पद्मपुराण | Paddampuran

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Paddampuran by श्रीमद रविषेणाचार्य - Shrimad Ravishenacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोहा- ४ श्री 1005 चन्द्रप्रभु जिनेन्द्राय नमः ४ पद्य-पुराण-भाषा (दुंढारी भाषाकार-स्वर्गीय पण्डित दौलतरामजी) हिन्दी भाषाकार आर्यिका दक्षमती माताजी पर्व-1 || मंगलाचरण ।। चिदानद चैतन्यके, गुण. अनन्त उरधार। भाषा पद्‌मपुराणकी, भाषू श्रुति अनुसार।।11। पच परमपद पद प्रणमि, प्रणमि जिनेश्वर वानि। नमि जिन प्रतिमा जिनभवन, जिन मारग उरआनि।।2।। ऋषभ अजित सभव प्रणमि, नमि अभिनन्दनदेव। सुमति जु पद्म सुपार्श्व नमि, करि चन्दाप्रभु सेव । 131 । पुष्पदत शीतल प्रणमि, श्रीश्रेयासको ध्याय। वासुपूज्य विमलेश नमि, नमि अनंतके पाय।।4।। धर्म शाति जिन कन्थु नमि, अर मल्लि यश गाय। मुनिसुव्रत नमि नेमि नमि, नमि पारसके पाय।।5।। वरदधमान वरवीर नमि, सुरगुरुवर मुनि बंद। सकल जिनद मुनिद्र नमि, जैनधर्म अभिनन्द ।161। निर्वाणादि अतीत जिन, नमों नाथ चौबीस। महापद्म परमुख प्रभू, चौबीसो जगदीश ।17।।




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