पलकों में बंद पल | Palkon Main Band Pal

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Palkon Main Band Pal by शिवकुमार शर्मा - Shivkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मै इसी काम मे लग गया। पूरी सूझबूझ से काम किया। इस काम में काफी समय लगा। परन्तु मेने कार्यालय को सम्पन्न और व्यवस्थित बनाया। जो सुविधाएं सरकारी कार्यालय मे थी मैंने यहाँ जुटाई। मैंने और भी बहुत कुछ जुटाया। वह भी जो वहाँ नही था। एक ही कमरे म॑ बार-बार जरूरत की वस्तुए हाथ बढाते ही मिले। वस्तुओ की दूरी उनके उपयोग के अवसरो की दृष्टि से अवस्थित की गईं। बार-बार उपयोग की वस्तुए सब से नजदीक। कभी-कभी उपयोगी की सबसे दूर! मेरा आसन छ फुट लम्बा। तीन फुट चौडा | दो फुट ऊँचा। ऊपर एक गद्दा। बीच मे एक तकिया। पीछे एक रगीन पर्दा। सामने एक टेबिल। पान-दान आसन के बाईं ओर। उससे आगे पानी की मटकी दो-तीन गिलास। आसन की दाईं ओर स्टेशनरी । दाई और आगे दीवार पर एक कबोर्ड | इसमे बार-बार जरूरत की सभी वस्तुए | इसी मे शब्द कोश। नीचे एक टी-टेबिल। आसने की बाईं और एक गद्दीदार सीट ओर सोफा अगन्तुको के बैठने के लिए। दाईं और एफ दीवान। दीवान पर दो गोल तकिये दीवाल के सहारे रखे हुए। मेरे शयन और आराम के लिए। आसन के सामने दीवान की खुली अलमारी। इसमे कई देवताओ की मूर्तिया ओर पित्र । जैसे दरबार लगा हो । उस अलमारी के बगल की दीवार सिद्धगणपति का वडा रगीन भित्र। अगल-वगल की अलमारियो मे पुस्तके ओर फाइलै तरतीववार। बीच मे खाली जमीन पर लिनोलियम का बिछौना। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही दाई ओर मेरे इस कायालय का प्रवेश द्वार था। अगन्तुको स घर वाला को काइ असुविधा नही। प्रवंशद्वार की बाई ओर टेलीफोन का स्थान | मेरे आसन से सवसे दूर। कोई टेलीफोन करने आवे घर का हो या बाहर का टेलीफोन करे। चला जाये। मुञ्ञे कम से कम विक्षेप हो। मेरा आवास चौराहे पर। मुख्य द्वार पूर्व की ओर। मुख्य द्वार के बाई और श्रीनाथजी की हवेली का मार्ग आगे सब्जी मडी फिर आगे किराणा बाजार। दाईं ओर सत्यनारायण-मार्य। आगे गुलाबबाग | और आगे उदयपुर की झीलो को जाने वाला रास्ता। दाईं ओर बगल से पीछे की ओर पुरानी बस्ती के कई मुहल्ले । फिर आगे महाराणाओ के ऐतिहासिक महलो को जाने वाले रास्ते। सामने सूरजपोल मार्ग बापू-बाजार बैक रोड और आगे विश्वविद्यालय। मित्रो और हितैषियो के लिए सहज पहुँच का स्थान मेरा आवास। आते-जाते मित्रो को मिलने के लिए मैं सदैव ही सुलभ। आवास के मुख्य द्वार पर घटी का स्विच मेरे कार्यालय की अपनी एक ओर घटी। मुख्य द्वार की घटी की शुक जैसी आवाज। वह बजे तो मैं द्वार पर पहुँचता हूँ। म कायालय की घटी बजाता हूँ. तो कोई अचर से आतता है । मरी आवश्यकता पूछता है । आवश्यकता ज्यादातर चाय-नाश्ते কী होती है। वह पूरी की जाती है। उदयपुर तगर मे एसे अवस्थित आवास मे अपने आपमे सुसम्पन्ने परिपूर्ण ओर स्वतत्र मेरा कार्यालय था। नई शुरूआत/15




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