केशव ग्रंथावली खंड ३ | Kesava Grandhavali Part Iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
401
श्रेणी :
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No Information available about विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संपादकीय ११
दूसरी प्रति की पुषिका है--श्री संवत् १८८८ श्रावण कृष प्रतिपदायां चद्र-
वासरे समाप्र शुभमस्तु । लिखक का नाम नही है |
री ठीकाश्नोःकेपठो काभी उपयोग किया गया है--पहली श्रीजानकीपसाद
की प्रकाशिका! टीका है जो सं० १८७२ में लिखी गईं और मुद्रित हो चुकी है | दूसरी
स्वर्गीय लाला भगवानदीनजी की “'केशवकोमुदीः टीका है जो स्ंप्रथम सं० श्ृ८०् में
मुद्रित हुई थी। “अ्न्यत्रः संग्रह-ग्रंथोी, मे मिले पाठ के लिए है। इन संग्रह-ग्रंथों का
विस्तृत विवरण विस्तारमय से छोड़े देते है.
जैसा पहले कहा जा चुका है। अट्वारहवी शती के अंतिम चरण के आसपास से
दस्तलेखो मे” मेल बहत होने लगा ¦ किदो” ने यदि किसी प्रति की अनुलिपि होते समय
उस पर अपनी काव्यदृष्टि डाली तो पाठभेद भी किया और यथास्थान परिवधन भी ।
“रामचंद्रचंद्रिका! के जिन हस्तलेखों का उपयोग किया गया है वे इस सीमा के अनंतर के
ही है. | इसलिए इनमे के कुह प्रवर्चित अश पाठशोध के अ्रनंतर स्वीकृत रूप में रह
गए হী तो असंभव नहीं है। जैसे पंचवटीवाले कालदूषणयुक्त प्रसंग की चर्चा की गई है |
यह प्रस्तुत संस्करण के आधारभूत सभी हस्तलेखों और टीकाओ में है। पर जैसा पहले
कहा गया है, संदेह के लिए अवकाश हो गया है ।
रामचद्रचंद्रिकाः के प्रकाशो के श्रारंम मे कथाप्रसंगसूचक दोहे दिए गए हैं |
ये किसी प्रति मे है किसी मे नहीं है और किसी मे कुछ प्रकाशों में है, सबमे
नही है | इसलिए इनका संग्रह रामचंद्रचंद्रिका! के 'परिशिष्ट” में किया गया है।
कथाप्रसंग के आरंभ में सूचना देना केशव की पद्धति है, क्योंकि उन्होंने 'विज्ञानगीता'
में भी यही पद्धति ग्रहण की है। “वीरचरित्र' मे ऐसा नदी है |
'रामचंद्रचंद्रिका' मे विविध छेदो का व्यवहार है। उन छंदो के लक्षण भी
साथ साथ दिए गए है । कुछ लक्षण तो मिखारीदास के काव्यनिणंवः के भी है । कु
का ठीक पता नहीं । कुछ केशव की “छुंदमाला' के है । रामचंद्रचंद्रिका! के संबंध में
कहा जाता है कि पिंगल के उदाहरण एकत्र करने को दृष्टिप्थ में रखकर उसका निर्माण
हुआ । इनकी 'छुंदमाला”? मे उदाहरण 'रामचंद्रचंद्रिका? के पर्याप्र दिए गए. है; | इसलिए
संभव है कि नए. नए छुंदों के साथ लक्षण भी दिए गए हो | स्वयम् केशव ने ही यह
योजना रखी हो | कुछ लक्षणों मे केशव की छाप भी है। वे उन्ही के है । पर हो
सकता है कि अनुलिपि के समय बहुत से अंश छूट गए हो जिनकी पूर्ति बाद में अन्यो
के द्वारा की गई हो | इससे लक्षण ओरो के दे दिए हो । सबंत्र नियमित क्रम आधारभूत
हस्तलेखा में न पाकर छुंदलक्षण का संकलन 'परिशिष्ट” के अंतर्गत ही किया गया है ।
इसकी छानबीन से कई तथ्यों का पता चलता है। केशवदास के पिंगल-ग्रंथ का पता परंपरा
को था | उसके हस्तलेख अवश्य प्रचलित रहे होंगे | क्योंकि छुंदो. के क्रम मे. ऐसा भी
लिखा मिलता है--“यह् केसोदास के मते दूसरो रूपमाला है! ।
“रामचंद्रचंद्रिका' के किसी किसी हस्तलेख में. फलश्रुति मूल ग्रंथ से मित्र भी दी
गई है । किसी किसी में 'केशव' छाप भी है। पर ऐसे छुंदों के केशवकूत होने मे संदेह
है | दो उदाहरण दिए जाते है -
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