श्री महावीर निर्वाण स्मारिका | Shree Mahaveer nirvan smarika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पा ज्योति पुञ्ज जीवन के --सारादस तिधिरोधः बचपन के तुम वद्ध मान थे, सन्‍्मंति थे तुम 'यौवन के, ज्योति पुझ्ज थे अखिल विश्व 'के, दर्शन थे जग-जीवन के, जहा विरोधाभास खड़े थे, श्रौर श्रसंगति मुह बाएं थी; जहाँ -टूटते मूल्य देखकर, मानवता भी श्रकुलाए थी, भ्रधियारे की बाहुपाश मे, सिमट रही थी समी दिशाए; जहाँ विषमता ग्रौर विफलता, भ्राठ पहर थी दुखी तृषाए, वहाँ एक तुम ज्ञानोदय थे, -ती्थ.कर -ये सकल भुवन के; जहां ज्योति का श्रौर तिमिरका, हरक्षण॒ -युद्ध चिंडार -हता था, ভি গীহ ভুল ঘনঘ रहे थे, सत्य. यातनाएँ सहता था; सत्य, श्रहिसा और আসান, त्याग मादव, सयम, तप के, लक्षण दिए जगत को तुमने, कष्ट हरे मन के श्रातप के; तुम तो होकर रहै महनिश, पथ प्रदशेक जग-गण मन के । १५




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