तीर्थकर ऋषभ और चक्रवर्ती भरत | Tirthakar Rishabh Aur Chakravarti Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन वाद्याय में ७
चेदपूकंक कहा जाता--द्दा ] तुमे यह् किया 7 अपराधी पानीन्यानों
हो जाता 1 उत्त समय इतना कबन নী মৃত্যু দা ক্যান करता था ।
फुछ दिनों तक यह् स्ययस्या चरती रहो । अपराप मो कम रोते,
व्यवस्था मो बनी रहती । फिन््तु, आवश्यकताओं फो पूछति के अभाव में
धीरे-धीरे अपराध बढ़ने छगे और प्रचलित दण्ड-व्यवस्या भी छोगों के
लिए सहज वन गई ।
माकार नीति
विमज़वाहन के वाद उसका द्ो पुत्र चल्मुष्मान् दूसरा फुछकर हुआ ।
वह भी अपने पिता की तरह ही व्यवस्याएं देता रहा । कमी अपराध
वदते ओर फमी कम होते 1 'हाकार! दण्ड से सब झुछ ठोक हो जाता ।
चशुप्मान् के बाद जब उसका पुत्र यशस्वी तृतीय कुकर बना; तव ধন
নহয, সলিঘীঘ ব অন্ন अपराध भी बढ़ते गए । यज्मस््वों ने यह सोचकर
कि एक औषधि से यदि रोगोपदान्ति नहों होती तो दूसरो ओोषधिं के
प्रयोग फरना चाहिए; 'माकार नीति” का प्रचलन किया । अपराधी से
कहा जाता--'और कभी ऐसा अपराध मत फरनाः 1 अल्प अपराधी फो
हाकारः सौर मारी अपराधी को 'माकार! का दण्ड दिया जाता )
धिक्कार नीति
यप्चस्वी और चतुर्थ कुलकर अभिचन्द्र के समय तक उक्त दो दण्ड-
व्यवस्थाओं से ही काम चलता रहा। पांचवें कुलकर प्रसेनजितु को फिर
इसमें परिवर्तन करना पढ़ा । अपराधों की गुझ्ता बढ़ती जा रही थी ।
प्रारम्भ में जिसे महादु अपराध कहा जाता, इस समय तक वह तो सामान्य
कोटि में आ चुका था। युगल कामात्तं, रज्जा वं मर्यादा-विहीन হীন
लगे; इसलिए प्रसेनजितु ने हाकार और माकार के साथ धिक्कार नीति!
का प्रचछन किया । इस दण्ड-व्यवस्था के अनुसार अपराधी को इतना
ओर कहा जाता--ुपे घिवकार है, जो इस तरह के काम करता है! 1
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