समयसुन्दर रासपंचक | Samayasundar Ras Panchak

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Samayasundar Ras Panchak by भँवरलाल नाहटा - Bhanvarlal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) यह कुसुमपुर नगर है और यह विश्वविश्रुत प्रियमेलक तीर्थ दै । यहा का चमत्कार प्रयक्ष दै, यहाँ जो मौन तप पूवक शरण लेकर बंठती है उसके बिछुड़े हुए प्रियजन का मिलाप निश्चय पूर्वक होता है। धनवती भी निराहार मोनत्रत ग्रहण कर वहाँ पतिमिलन का संकल्प लेकर बंठ गयी । इधर सिंहछकुमार भी संयोगवश हाथ छगे हुए लम्बे काष्ट खंड के सहारे किनारे जा पहुँचा। आगे चछ कर वह' रतनपुर नगर मे पहुँचा, जहाँ के राजा रल्नप्रभ की रानी रतनसुन्दरी की पुत्री रक्लतती अत्यन्त सुन्दरी और तरुणावस्था प्राप्त थी। राजकुमारी को साँप ने काट खाया जिसे निविष करने के लिए गारुडी मंत्र, सणि, औषधोपचार आदि नाना उपाय किये गये पर उसको मूर्छा दूर नहीं हुई, अन्ततोगत्वा राजा ने ढढोरा पिटवाया। कुमार सिंहलसिह ने उपकार बुद्धि से अपनी मुद्रिका को पानी में खोल कर राजकुमारी पर छिड़का ओर उसे पिलाया जिससे वह तुरन्त सचेत हो उठ बंठी। राजा ने उपकारी ओर आजक्ृति से कुछीन ज्ञात कर कुमार के साथ राजकुमारी रल्नवती का पाणिग्रहण करा दिया राधिके समय रंगमहल में कोमछ शय्या को त्याग कर धरती सोने पर रनवतती ने इसका कारण पूछा । कुमार यद्यपि अपनी प्रिया के वियोग मे ऐसा कर रहा था पर उसे भेद देना उचित न सममझ कहा कि--प्रिये | साता पिता से बिछुड़ने के कारण मेंने भूमि- शयन च त्रह्मचय का नियम ले रखा है। राजकुमारी ने यह'




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