कल्पलता | Kalplata

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Kalplata by वि.स. खांडेकर - V.S. Khandekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ आभार समय प्रत्येक बार सुझे उसके साथ जाना ही चाहिए, यदि यह हठ उसने किया होता, तो इस पुस्तककी वहुत-सी कहानियोको छिखनेका मुञ्चे समय ही न मिलता । इस वाक्यको पकर मे मन-दी-मन ईसा सौर आगेकरे मजमृनकोौ बड़ी उत्सुक- तासे पटने ख्गा । लेखकने अपने कमरेके ऊपर रहनेवाटी भौर शत्य सीखनेवाटी एक खीका मी आभार माना था| क्योकि वह यदि चौबीसों घट उसके सिरपर नाचती रहती तो उसे लिखनेके लिये शान्ति ही प्राप्त न होती । मैने आगेके भागपर दृष्टि डाली । उसके आमभारोकी सूचि बहुत बड़ी हो गयी थी। उसमे उसने शुद्ध शराब देनेवाले दूकानदारका मी समावेश किया था | यह बात नहीं कि सूचिको पढ़ते हुए. मुझे हँसी न आयी हो | उसे बनाते समय युक्त लेखकने स्मरण-शक्तिकी अपेक्षा विनोद-बुद्धिका ही अधिक उपयोग किया था, यह सच है| परतु एक ओर तो हँसी आ रही थी और दूसरी ओर मेरा मन कह रहा था- इस विनोदके पीछे एक कोमल भावना छिपी हुई है - एक चिरन्तन सत्य इस विनोदके परदेमेसे भी बाहर झेंककर देख रहा है। कितने सूक्ष्म स्नेह- बन्धनोसे हम सब धे है, यह इससे सूचित हो र्हा है| चाहे जब मुहको गोल-गोल-सा बनाकर ‹ थक्‌ यू ` कहते रहनेवाङे व्यक्तिपर সুই क्रोध आता है | समाके वाद अंतम याभार-प्रदशेनके लिये उठकर रंगमे भग करनेवाठे प्राणीका तो मै तिरस्कार दही करता हू । अन्तःकरणमे आमार माननेके बजाय अपनी अधूरी विद्वत्ताका प्रदशन करनेमे ही उसे अधिक धन्यता माद होती है। परतु कृत्रिम फूलॉमें सुगध नहीं होती, इसलिये क्या कोई लतापर खिले हुए. फूलोकी सुगध लेना छोड़ देता है ! आभारोकी भी वही बात है | पत्नीसे लेकर शराबके दूकानगरतक आमार माननेवाले उस लेख़ककी तरह मैं भी बीच-बीज्नमे चहुतोंके आभार मानता रहता हूँ | तग सड़कसे जाते समय सामनेसे मोटर ठेला आ जाये ! वह जब नजदीकसे गुजर जाता है और यह विश्वास हो जाता है कि धूलक सिवा और कोई प्रसाद उससे हम न मिला, तब मैं उस भव्य रथका संचालन करनेवाले ड्राइवरका मन-ही-मन आमार मानता हूँ। मैं ऐसे समय यह नहीं भूलता कि यदि उसने थोडी भी असावधानी की होती तो कालिदासके मरणं ग्रकृतिः शरीरिणाम्‌ 'वाठे सिद्धान्तकां मुञ्चे तुरंत अनुभव हो जाता | होव्लमे भोजन करनेके बाद दो-तीन दिनम यदि स्वास्थ्य न बिगड़ा, तो




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