निबन्ध संग्रह | Nibandh Sangrah

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Book Image : निबन्ध संग्रह  - Nibandh Sangrah

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ निबन्ध-संग्रह प्रपंचनाथ - नहीं नहीं वह सर्वथा बाघ नहीं था. मन्नृ०--तो क्या था ! प्रपंच ०--वह कलियुग होगा. म०--वाह महाराज जी वाह [ क्‍यों न हो आप ऐसी दून की लेते हैं कि बस, प्रपंच०--अबे मेरी बात भी सुनता है, वह निस्संदेह कलियुग था, कलि- युग और व्यात्र का धर्म एक ही है, देख यह कलियुग का बाघ सच्चे बाघ से भी भयंकर है जो बुरे लोगों के हृदय रूपी बन में रहता है ओर जिसकी गरज सुनते ही बिचारे धर्मादिक मृग लोग भागते फिरते हैं, काम क्रोधादिक उसके कराल- 'कराल दाँत हैं और बड़े-बड़े पाप उसके पंजे हैं, श्रच्छे-अच्छे मनुष्यों को मारता फिरता है परन्तु ज्ञानी लोग उसको ज्ञान की गोली से मार गिराते हैं जैसे वह . यहाँ मारा गया. म०--महाराज वह तो बाघ ही था. प्रपं०--नहीं बाघ सवेथा न होगा क्योंकि यदि कलियुग न होगा तो चंद्रमा होगा जो प्राची दिशि रूपी गुहा में निवास करता है और त्िरही मृगों को परम दुखदाई है. मन्‍नू--नहीं महाराज वह तो व्यात्र ही था. प्रपं ०--नहीं चन्द्रमा न होगा कालात्मा भगवान्‌ होगा जो अपने दिन रात्र रूपी ऊपर नीचे के दाँतों से यावत्‌ संसार को मृग बनाकर भक्षण करता নিল विचरण करता है, म०- महाराज मैं तो समभता हूँ कि बाघ ही है यदि कालात्मा भगवान होता जीता क्‍यों न रहता मारा कैसे जाता. प्रपं ०--कालात्मा भगवान भक्ति से जीता जाता है, जिसको उसकी भक्ति है, उस्को कल का भय नहीं, अच्छा कालात्मा न होगा तो मुसलमानों का राज होगा जो समस्त हिन्दू रूपी मगों को नाश का कारण हुआ परन्तु सरकार की राज्य रूपी गोली उसको ऐसी लगी कि फिर न उठा पर उस्के घायल किये हुए, कई प्रबन्ध रूपी मग ऐसे पड़े हैं कि उनके अंग भंग हो रहे हैं, इत्यादि [ कवि-घचन-सुधा ए० ८३-८४ | उपरोक्त उदाहरण नाटक ( एकांकी ) का श्रैश नहीं एक निबन्ध मात्र है क्योंकि यदि यदह्द नाटक होता तो इसमें भादि ओर अत होता, नाटकीय परिणशति




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