सेठ गोविन्द दास की जीवनी | Seth Govind Das Ki Jeevani

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Book Image : सेठ गोविन्द दास की जीवनी  - Seth Govind Das Ki Jeevani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) तरफ मराठो का उत्थान हो रहा है और दूसरी तरफ फिरंगियो का | मे भी इस समय तक्दीर को अजमाना चाहता हैँ ।” “एक नये राज्य की स्थापना करके १” “हा, परन्तु पृथ्वीपति बनकर नही, वह ज्षत्रियों का क्षेत्र है। में वैश्यो के क्षेत्र व्यापार का राजा होना चाहता हूँ।” ऊँटवाला जोर से हँस पड़ा। हँसते हँसते ही बह बोला-- “इस राज्य की स्थापना किस मुल्क में होगी १” “यह अभी तय नहीं किया है। जिधर तकदीर ले जाय |” सोने का सूर्य आकाश और सारे सरुस्थल को आलोकित कर रहा था। डेटनी ने वलबला कर अपनी पानी की थैली मुँह से निकाल उसका पानी पिया। पानी पीते-पीते ही वह एक छोटे से गोव के निकट पहुँच गई। गाँव के बाहर कुएँ पर काफी भीड़ थी। पनिहारियाँ पानी भरती हुई गा रही थी । ऊँटवाले ने उँटनी को रोककर चिठाया। सेवारामजी और अटवाला दोनो ऊँट से उतर पड़े। सेवारामजी के पास पहने हुए कपड़े ओर कंबल को छोड़कर चगल मे एक गाढ़े की धोती और हाथ मे लोटा डोर के अतिरिक्त और कोई सामान न था। [ २ |] इस घटना के पाँच वर्ष चाद जबलपुर ज़िले की जबलपुर तहसील के बेलखाडू गाँव से सेठ सेवारामजी अपने निजी मकान मे रहते थे। यद्यपि उस समय रेल आदि ॐ सदश कोई तेज़ सवारियॉ न थीं, पर महत्त्वाकांत्ा ने जयसलमेर सच्श सुदूर देश से भी सेठ सेवारामजी को इतनी दूर भेज दिया था।




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