स्वर्ग की सीढ़ी | Swarg Ke Sidhi

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Swarg Ke Sidhi by महावीर प्रसाद - Mahaveer Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दीनता सीखनेका उपाय । 5 সা পি বন क ই কউ: অয 'पड़े । यद देखकर उस सिशछुने चकित होकर पूछा, कि यों হাহা ! क्या हुआ ? आप रोते क्‍यों है? मदात्माने कहा कि भाई ! तुमने ज्ञिस सन्त की बात कही वह मेरा मित्र है; इससे धुझे उस पर ठया झागनी है। मुझे रुलाई आती है, कि दरे हरे ! इतने घर्षो्से भक्ति करते रहने पर भी चद अभी अपनेकों सकी नोक बरायर सममभना है। में तो जानता ना, कि আছ अपनेको कुछ भी नहीं समझता होगा और 'ईश्वरमें लीन दो जानेसे अपने आपको बिलकुल भूल गया दोगा । श्सके विरुद्ध चह अभी श्चपनेक्षो सुरेकी नोक्त वरा- अर समभता है, यद्द ज्ञान कर मुझे श्रफलोल हुआ | इससे सुभे ख्लाई अ गयी | यद्द धात खुन कर वद्द जिनासु भौर सी चकित हुभा प भाष्य ! याद्‌ रखना, कि जथ पेली दीनता अवे तभी मोक्त दो खता है । परन्तु पेलौ दीनता सदजपरं नदीं श्राती। 'देसी सच्ची दीनता तो नभी आ सकती दे, जब जगतका -मिध्यापन सममे शरावे. देका क्षणमंगुरपन सममे आचे और महात्माश्रौके सत्क्तंगमें रहा जाय । दसवास्ते सशी दीनता सषीखनेके लिये, जिनको खली रद्ध लग गया दो, उन दरिजनोके सत्लड्में रहना चाहिये। दनकी दीननता धूम पर असर कर सकती है और दमें मिल लकती है। और अगर दम उनकी देखादेली आपसे आप दीनता न सीख सकं तो थे सच्ची रीतिसे समझा कर भी हमे दीनत्ता सिखाते है । इसके लिये पक महाट्माका दृष्टान्त है और बह जानने योग्य द, इसलिथे-यहां कतां




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