प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ | Pramukh Aetihasik Jain Purush Aur Mahilayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
387
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ज्योतिप्रसाद जैन - Jyotiprasad Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेग़ो तरकश के घती थे रजमगह में फर्द थे,
इस शुजाअत पर यह तुर्रा है, सरापा दर्द थे ।
-अर्क देहलूवी
पुर्वपीठिका
जैनों के परम्परागत विश्वास के अनुमार वतमान कुष्पकाल के अवसर्पिणी विभाग
के प्रथम तीन युगो में भोगभूमि को स्थिति थी। मनुष्य जीवन की वह् सर्वथा
प्रकृत्याश्रित आदिम अवस्था थी । न कोई सस्कृति थी न सभ्यता, न ही कोई व्यवस्था
थी और न नियम । जीवन अत्यन्त सरल, एकाकी, स्वतन्त्र, स्वच्छन्द ओर प्राकृतिक
था । जो थोडी-बहुत आवश्यकताएँ थी उनकी पूर्ति कल्पव॒क्षों से स्वत सहज हो जाया
करती धी । मनुष्य शान्त एवं निर्दोप था। कोई संघर्ष या इन्द्र नही था। आधुनिक
भूत्व एव नृतस्व प्रभति विज्ञान सम्मत, आदिम युगीन प्रथम, द्वितीय एव तृतीय युगो
( प्रादमरी, सेकेण्डरी एव टलियरी दपेक्म }) की वम्तुम्थिति कै साथ उक्त जैन माम्यतां
का अदभुत सादृश्य ই । वैज्ञानिको के उक्तं तीनो युग कगोडो-लखो वर्षो के अति
दीघकालीन थे, तो जैन मान्यता का प्रथम युग प्राय असख्य वर्षा का था, दूसरा उससे
आधा लम्बा था, और तीसरा दूसरे से भी आधा था तथापि अनगिनत वर्षों का था।
इस अनुमानातीत सुदीर्घ काल में मानवता प्राय सुपुप्त पडी रही, अतएवं उसका कोई
इतिहास भी नहीं हू । वह जनाम युग था ।
तीसरे काल के अन्तिम भाग में चिरनिद्वित्त मनुष्य ने मेंगडाई छेना आरम्भ
करिया। मोगभूमि का अवसान होने लगा । कालचक्र के प्रभव्र से होनेवाले परिवर्तनो
को देखकर लॉग शकित और भयभीत होने लगे । उनके मन मे नाना प्रश्न उठने लगे ।
जिज्ञासा करवट लने च्गी । अतएव उन्होने स्वय को कुलो (जनो, समूहो या कबोलो) मेँ
यठित करना प्रारम्भ किया । सामाजिक जीवन की नीव पडी । बल, बुद्धि आदि विशिष्ट
जिन व्यक्तियों ने इस काय में उनका मागदशन, नेतृत्व और समाधान किया ये 'कुलकर'
कहलाये । व आवश्यकतानुमार अनुगासन भी रखते थे और व्यवस्था भी देते थे, अत
उन्हें मनु नाम भो दिया जाता है। उनको सनन््तति होने के कारण ही इस देश के
निवासी मानव कहलाये । उक्त तीसरे युग के अन्त क॑ छगभग ऐसे क्रमश चौदह
कुलकर या मनु हुए, जिनम सवप्रथम का नाम प्रतिश्षुति था और अन्तिम का नामिराय ।
इन कुलकरो ने अपने-अपने समय की परिस्थियों में अपने कुला या जनो का सरक्षण,
समाधान ओर मायदशन किया । सामाजिक जीवन प्रारम्भ हो रहा था। कमयुग सम्मुख
था। यही से समाम युग प्रारम्भ हुआ ।
अन्तिम कुलकर नाभिराय के नाम पर ही इस महादंश का सर्वप्राचीन ज्ञात
लाम 'अजनाभ' प्रसिद्ध हुआ। वह अपनी चिरसयिनी मरूदवी के साथ जिस स्थान मे
मिवास करते थे वही कालान्तर में अयोध्या नगरो बसी । भारतवष की यह आद्यनगरो
प्राचेद्धिक ५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...