विशाल भारत | Vishal Bharat

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बनारसीदास चतुर्वेदी -Banarasidas Chaturvedi

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रामानन्द चट्टोपाध्याय - Ramanand Chttopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनक्हों 4६३॥ ; माघ, १६८७ ) भ कात দন্ত ₹§ जम्बरको गुफा खोकनेश्ालोष्ा छ्य बहुत दा पामन আনুন होता है, नेक विप्त-बाधा और कठिनाइयोंके रहते हुए भी उन्होंने १९० फीटको सीधी गहराई किस तरह काटकर पार की होगी, यह एक पहेली सी मालूम होती है । उस गुफाका मुख ६४ फीट चौड़ा है | साममेका भप 15 फोट चौड़ा १६ फीट ऊँचा भौर बारीक छारीगरोके जेल-बरयो तंवा स्तम्भ शभादिसे मरा हुआ है । भीतरी हिस्सा ६४ फीट लम्बा भ्रोर इतना ही चौड़ा है। उसके चारों ओर कीस स्तम्भ हैं, भौर स्तम्भोंके भास-पास दालान हैं। इस मण्डपके भन्द्र साममेकी भोर १६ कीर लम्बी एक दूसरी दालान है । वहाँकी कारोगरी बहुत ही सुन्दर है। इसी दालामके वीचोबीन गर्भ प्रन्दिरमें द्वारपाक्षोके साथ भगवान चुद्ध्षी सुन्दर मूति हे । हरसे स मूर्ति तककी दूरी १२० कौट हे) इस गभे-मन्दिस्वाली दाल्ानमें हो एक समूची दीवारपर भगवान बुद्धकीं तपश्चर्या झौर मारके भाकरमदबाला चित्र भंकित है। भरनेक प्रकारके प्रलोभन भौर भये सानि साय मार बुद्ध भगवानको विचलित करने धाया है इसमें चित्रकारकी तृलिकाकी भज़ीब करामात दिखाई देती है। प्रत्येक आकृति स्पष्ट रेखाधोमि विविध সিল माष भौर मलंकारोंके साथ इस तरह झ्रकित की गई है कि पमाधुनि$ चित्रकार उनसे बहुत-कुछ शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। इस चित्र-मण्डलर्म बुद्ध भगवानकी मूर्तिप' अलौकिक शान्त परिलद्धित होती है। क्षमूचा चित्र क़रीब १२ फीट ऊँचा भौर८ फीट चौढ़ा हे। অন্ন नहीं भ्राता कि जिस ১ स्थानर्मे केवश शामकों ही प्रकाश पहुँचता है भौर बह भी अजन्ताका कला मंडप ११ ङक हो कगोकि किए, उस स्थानकी इस दीक्षारप्र इतनी कासकाययुक्त भोर कलापूर्ण झाकृत्तियाँ क्रिस प्रकार अंकित की गहं होगी, झाऊ भी जब शानके वक्त सूयी अन्तिम किरणे इस गुफामें प्रवेश करती हैं, तब थोड़ी देस्के लिए घब चित्र जगमभया उठते ह, भौर दोक अवाक्तू होकर--'भ्रदभुत ! अदभुत ? कहने लगता है ओर उसका हृदय श्रद्धासे प्रणास करने लगठा है । गुफा न॑० १ और २ म॑ सबसे परधिक चित सुरक्षित बचे हैं। उनमें ऐसे प्रमाण मी उपलब्ध हैं, जिनसे उनका समय जाना जाता है । ৭ नम्बरवाली शुफाके मगबपकी दालानमें एक ऐसा चित्र है, जिसमें दिन्दू राजा पुलकेशी द्वितीयको राज- सभा ईरानके राजा खुशरू परवेज़के राजदूत भेट पया करते हृष दिख।ये गये हैं। इस चित्रसे ईरान शोर भारतका प्राचीन सम्बन्ध प्रकट होता है। प्रधिकतर यह थठना सन्‌ ६२६३ से ६२८ तककी हे । इस १ नम्वरकी ग्रफाकी विश्रकारी श्रजन्ताकी कला-समृद्धिकी पराक्ाष्ठा दिखाती है। ससारके নিক উহা प्रादीन कल्लाका साथन रेखा ह, किन्तु भजन्ताके चिन्रकारकी रखा जो भनेक तत्त्व प्रकट हुए हैं. थे ससाश्की भन्‍्य कलाझोंमें दिखाई नहीं देते। यहाँ तुलिकापर चखित्रका रका इतना अधिकार दिखाई देता दे कि उससे जो रेखा निकलती है, बह भावके धमनुसार ही रूप धारण करती जाती है। पअ्रजन्ताकी भ्ाकृतियोंकों देखनेसे यद्द स्पष्ट मालूम होता है कि गोल या धन भाकृतियोंको रेखा-द्वारा व्यक्त करनेको क्रिया उनके लिए सुस्राध्य हो गई थी। कहीं डभरती हुई भाकृतियाँ, कहीं मूलते हुए मुक्ता-.हार और सुशासम वद्ध कहीं सुघह नासिक्ठा भौर सदु उद्र, ठतो डी अजन्तामें अलकारिक कमल कि रूप




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