आत्म संबोधन | Aatma - Sambodhan

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Aatma - Sambodhan by सहजानन्द महाराज - Sahjanand Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ 1 श्रीमत्ती तुलसाबाई ने एक पुत्र र॒त्त को जन्म दियाहै। उसीका यह आनन्दोत्सव मनाया जा रहा दै | पिता श्री गुलाब राय जी के दं फा कोड पारावार ही नहीं । चाचा बगैरह प्रसन्नता से फूले नहीं समाते | सभी ने मिज्ञकर इस सोम्य मूर्ति को नाम दिया सदन सोहनः | । भालक मगनलाल्ः- किसी को मनद सुखकान से, किसी को अपनी सुन्दर चाल ढाल से, ओर किसी को तुतलाती भाषा से रंजित करता हुआ बालक बढ़ने लगा । परन्तु कैव-- देव से यद खव न देखा गया। ३ वर्ष का बालक-बीसार पडा-ऐसा बीमार - बचने की कोई आशा नहीं। परिवारजनों ने वालक के जीवित रहने की आशा से बालक का अशुभ नाम रखा (मगनलालः श्र्थीत मांगा हुआ । पुस्य ने साव दिया । मगनज्ञाज्ञ के पेट की नखों पर गसं लोहा रखा गया } वह क्च गया ) क्‍या पता था किसी को उस समय कि बालक मगन का यह नाम सार्थक दी सिद्ध होगा अर्थात्त्‌ भविष्य में वह सदा ही अपने आत्मावलोकन मे 'सगन! रहा करेगा | समवयस्क बालकों में खेलता परन्तु किमी बच्चे का दिल न दुख जाय यद्‌ भावना संदा रहती । सदेव पराजित चालक का पक्ष लेता जब कि दूसरे बालक उस बच्चे की हंसी उड़ाते | विद्यार्थी मगनलालः-- । अच कुछ आगे चल्षिये | सगनलाल & वष के हये । धर्‌ पर




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