परिमल | Parimal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
अपनी संस्कृति की रक्षा करनेवाले ये गत शत्ताब्दियों के महापुरुष
अपनी भाषा और लिपि के भीतर से अप्तीम বব अपनी অন্লানী को
दे गए हैं, वे नहों जानते ফি भाजझल के जमादारों, न्यो,
मारवाड़ियों ( मेढ़ो श्रोर गुनरातियों के निरक्षर शरीर के भीतर
कितना बड़ा स्वानिमान इत देन्यके कालम भी जाग्रत् है, वै
“बहु-जन-द्विताय, बहु-जन-छुखाय” छा चिल्लकुल् एवयाल नर करते 1
इधर भारतेन्टु यावृ हरिश्चन्द्रजी से ठेर श्राचायं परिडत म्टाचीर-
प्रसाद द्विवेदी तक जिन चोमों %ो खदीवोल्ली ष्टी प्राण-प्रतिष्ठा का
श्रेय मिलता, भाषाके मार्जन में जिनलोगोंनेश्रपने शरीर ॐ तमाम
रक्तविन्दु सुखा दिष् है, हिन्दी में खिचढ़ी-शेज्ञी फे समावेश सथा
प्रचार से शहरों के प्रचलित झक-शब्दों तथा झुद्दाविरों को साहित्य
मे जगह देते हर् सुघक्लमान शाप्तन-काक्ष के चिह्न भी रख दिए हैं,
श्रौर इस तरद्द अपने सुपलमान भाइयों को भी राष्ट्र की सेवा के लिये
आमन्त्रित किया है, साहित्य के साथ-साथ राष्ट्रसाहित्य की भी कविता
का उन्हीं लोगों ने प्रथम शुद्धार किया है। थे णानते' थे, कल्न-
कत्ता, बम्बहे, मदसि शरोर रङ्गन श्रादि -अपर-माषा-माषो प्रान्तों में
हिन्दी द्वी राज-कार्य तथा व्यवश्ताय आदि में लाई जा सकती दै)
शासक अंगरेज्ञों के मस्तिष्क में भी यद्दी ज़वाल जड़ पड़ढ़े हुए हैं श्र
वे भारत के किये हिन्दी को ही सार्वभौमिक भापा मानते और फार्य-
सन्चालनार्थ उसी की शुद्धाशुद्ध शिक्षा अहदय करते हैं । में यहाँ श्रव-
श्य बंगला का विरोध नहीं कर रहा, टसके आधुनिक अमर साहित्य
का मुझ पर काफ़ी प्रभाव है, में यहाँ केवज्न ओऔवित्य की रघ्ता कर
- रहा हूँ । जिस भाषा के भ्रकार का उच्चारण बिक्षकुत्त अनाये है, जि
' में हस्व-दोध॑ का निर्वाह होता ही नहीं, जिपमें युक्राक्तरों करा एक
भिन्न ही उच्चारण होता है, जिसके ःस!कारों और 'नकारों के मेद
सूते ही नहीं, वद्द भाषा चाहे जितनी मधुर हो, साहित्यिकों पर
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