मुख सरोवर के हंस | Mukh Sarowar Ke Hans

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज मुख सरोवर के हंस 5 क्या भरती भरी, कि गुछ के नाम की घूनी जलाई, अलख लगाई, भभूत' रमाई, कि प्रणाम करते हँ मामू महेदवरीनाथ, गुर निर्मलीनाथ को, कि जिनने हमारा मड मृडा, कान फाड़े । विद्या का भार, वेदों का सार दिया । हाथ में चमत्कारी-चिमटा, माय में त्रिलोक-व्यापी त्रिपुण्ड दिया। ज्ञान का कमण्डलु, घ्यान का त्रिशूल थमाया, कि कन्ये पर खर्वाग की भोली दी श्रीर हाय में संन्यासी-सोटा दिया । गुरुओं के नाम की अलख पुकार के, पंचनाम देवों ने चार चुटकी खाक पंचाचूली की वनस्थली की ओर उड़ाई, कि इस वनस्थली को भी हमारा नमस्कार : है, जिससे वॉजि-फरल्याँट, चीड़-देवदार की समिधाएँ वटोरकर हमने गुरुओं के नाम की घृनी जगाई, श्रलख लगाई । चार चुटकी खाक का क्या उड़ना, लाख की सौगात, देवों की करामात, कि भ्राज पंचाच्रूली की वनस्थली में भरपुर वहार, इस पार, उसं पार डाल-डाल भ्रूुल, डाल-डाल पुल गई, किप 1त-पात फल लग गए । जिस पंचाद्रूली पवत कौ वनस्थली मे लंगूर-वानर घिघारू-हिसालू ? को तरसते थे, आज फलों का खाना, फलों का हगना करने लगे । पदी कक की 'कफू', न्‍योली की नेहु” से सघन-बनांचल मुखर हो गया, कि प्रकृति-नटी श्राज छम्‌-छम्‌ नाचने, थैया-थैया थिरकने लगी, कि जनम-जोगी, करम-जोगी, पंचनाम देवों का चित्त चलायमान हो गया । पंचनाम देवों ने सोचा---/दिन आए, मास लगे । मास गए, वरस लगे । हमारा सारा जनम खाक के ओढ़ने, खाक के विछाने में चला गया, कि हमारा जोगी-मन न रंग से रंगा, न रस से भीगा ।'''पुरवेया वयार चली, हमारे हिया हिलोर न उठी, ठण्डी पनार* वही, हमारे जिया पुलक 1. एक वन्य-तागा, जो संन्‍्यासियों के लिए ५विन्र माना जाता है १ 2. दो पहाड़ी वन्य-फल । 3. 'पनार' बेसे यहाँ एक नदी भी है, श्रलमोड़ा के पुर्वाचल में, पर यहाँ 'सरिता' के श्रर्थ में लो गयी है ।




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