पुष्यमित्र | Pushyamitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaishali Ki Nagarvadhu by गुरुदत्त - Gurudutt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुरुदत्त - Gurudutt

Add Infomation AboutGurudutt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पुष्यमिम ६ दूर दर मरये में होने हो गये । उस समय ऐसा झनुभव पिया जाये जगा कि सयोक हो गया है भर किसी युवा पुरुष को राज- गही पर चेडना चाहिए । सबको हुष्टि सम्प्रति पर थी । घह सुन्दर, मेघावी युगद स्ग। उु्ाग चपुविहीन होने से उचित म्रधिकारी नहीं समभा गया। भ्रयोत भी चाहता था फि सम्प्रति ही गद्दी पर देठे । परन्तु वौद्ध भिकु कुणाल का पक्ष सेने थे । कुपाल बौद्ध सतावलस्थ्री था श्रीर सम्प्रति घव या । श्रत विवाद सा हो गया। के पक्ष में पूर्ण बौद्द नम्प्रदाय था। सम्प्रति के समर्थन पर भी मिस्सहाय था । की सहायतारव एक तेजश्वी ब्राह्मण चज्वादु साठ हो गया । समने सम्प्रति को बौद़ों के कुचक्र से निकाल कर एक स्वतन्त स्यान पर खड़ा कर दिया शरीर दोनो एक सेना निर्माण कर पाटनी पुन पर श्रधिकार करने चल पढ़े । “इस बीच श्रणोक राज्याच्युत्‌ कार कही भेजा जा चुफा था श्रौर कुणाल राज्याघिकारी माना जा चुका था । उस पर भी राज्य में सम्प्रति की सेना का विरोध करने की क्षमता नहीं थी । भ्रत्त पित्ता-पुव में सस्धि हो गई श्रौर कुखाल नाम मान का राजा रह गया । वास्तविक राज्य का कार-भार सम्प्रति के हाथ में आरा गया । इस पर भी पुत्र के मन में पिता के प्रति थद्धा-भक्ति उत्पन्न हो गई झौर इसके परिणामस्वरूप राज्य को वौद्धों के दुष्प्रभाव से रिक्त नहीं किया जा सका । भरत राज्य में वह दुर्वलता, जो श्रशोक के काल मे उत्पन्न होने लगी थी, बढती गई । वह राज्य जो गाघार तथा कपिदा से लेकर काम- रूप देश तक श्ौर हिमालय से लेकर कावेरी तक विस्तृत था, टरटने लगा । दूर-दूर के प्रदेश स्वतन्त्र राज्य बनने लगे। यहाँ तक कि के सम्बन्धी भी जहाँ-जहाँ पर थे, स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर बैठे । “व सम्प्रति का पर-पौच्न वृहदथ राज्य कर रहा है। महाराज के काल से तो विदेशियों के भी झ्राक्रमण होने शारम्भ हो गये हैं।”' पुष्यमित्र इस कथा को सुनकर एक परिणाम पर पहुँचा कि देश में




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now