मैथिलि शरण गुप्त | Maithili Sharan Gupt

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Maithili Sharan Gupt  by राधेश्याम शर्मा - Radheshyam Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# नि २ । ज क ~~ क नेषणि সপ্ত (0 अमन» ५ * = वह तो श्रपने प्रियतम के सन्तोषमे ही सन्तोष का श्रनुमव-करने वाली भारतीय, : प्रदशे-ललना का रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रादर्शवादी कवियों में ग॒ुप्तजी का प्रथम स्थान है | सबसे प्रधिक महत्वपूर्ण बात तो यह है कि उनके प्रादर्श भ्रत्यन्त सहज, स्वाभाविक तथा सुलभ हैं । गोधीवादी कवियों में गुप्त जी --- गान्वीजी का दर्शन हमको ग्रात्म-त्याग, बलिदान, अहिसा का पाठ पद़ाता है । उसमे परोत्यीडन, हिंसा तथा असत्य को स्थान नही । श्रछृतोद्धार की भावना, दीनो के प्रति प्रम गान्धीजी कै प्रिय श्रादक्षं रहै । इनको ग्रुप्तजी के साथ-साथ प्राधुनिक कवि किस प्रकार श्रपना पाए है यह्‌ द्भ्य है। उपन्यासके क्षे में प्रेमचन्दजी ने गान्धीवाद को प्रश्नय दिया । प्रषाद, निराला एव दिनकर प्रादि प्रायुनिक-कवि गान्धीवादी विचारषारापो को उस सीमा तक नहीं अपना पाए, जिस सीमा तक ग्रुप्तजी । गान्धीवादी विचार-धाराए उनके कांव्यो में मुखर हो उठी हैं। इसका एक मात्र कारण यह भी है कि वे भपने व्यक्तिगत जीवन में भो गान्धोजी के सपक मँ श्राति रहे। बापु के दिवगत हो जाने पर लिखित शप्रानन्ति और प्रष्ये” रचना यदि एक और उनके कृत्यो का वर्णन करती है तो दूसरी प्रार प्रश्न विमोचन करती हुई वापू की दिवगत प्रात्मा को शान्ति का सन्देश देती है। गान्धीजी की सहानुभूति प्रछूतो, कृषकों तथा नारियो के प्रति विशेष रूप से रही , प्रतएव गुप्तजी ने भी श्रपनी सहानुमृति का पाश्न इन सभी को बचाया । कृपको के जीवन कौ कथा को लेकर यदि प्रेमचन्द ने गोदान को प्रणयन किया तो गप्तजी ने किसान? काम्य का जिप्षपे किसान के जीवन पर प्रालोचनात्मक दृष्टि से प्रकाश दाला गया है, जेघा कि निम्नलिखित पक्तियों से श्रभिहित होता है -- जिस खेती से मनुज मात्र श्रब भी जीते हैं, उसके कर्त्ता हमी यहाँ आसु पाते हैं । शिक्षा को हम श्रौर हमे शिक्षा रोती है, पूरी बस वहु घास खोदने में होती है । ! हा हा खाना और सवंदा आसू पीना, 4 नही चाहिये नाथ ! हमे श्रब ऐसा जीता । 9 गुप्तनी ने तारियों के प्रति प्तम्मान की भावना भी प्रभिव्यक्‍्त की । उन्होंने नारी को अपने काव्य का विषय बनाकर “ यत्र नार्यस्तु पृज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ” की । भावना को प्रतिष्ठा की । चारो प्रवस्था का चित्रण इन पक्तियो से किया गया है ~ अबला-जीवन, हाय तुम्हारी यही कहानी । | श्राचल मे है दूध और आखी में पानी ॥ * ০৫2৮২ १ - गुप्त जी - किसान, पृ० ५। २ - गुप्त जी - पशोधरा, पृ० ४७ |




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