भविष्य पुराण की भाषा | Bhavishya Puran Ki Bhasha

Bhavishya Puran Ki Bhasha by पं. दुर्गा प्रसाद चौरसिया - Pt. Durga Prasad Chaurasia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु्वाद्ध। बातचीत अादि नहीं करसक्के इसप्रकार यह अति (विचित्र संसार इंश्वर से उत्पन्न हा है जब वह परमात्मा निद्रावश होकर शयन करता है तब यह सब संसार उसमें लीन हो जाता हे और जब निद्रा का त्याग करता है तत्र सब सष्टि उत्पन्न होती है और जीव पहिली भौंति अपने २ घंघेमें लगते हैं. कल्पके ग्रारम्ममें सष्टि और कल्पके अन्तमें प्रलय परमेश्वर करता हे कल्प परमेश्वरका दिनहे इसकारण परमेश्वर के दिनमें सष्टि ्ौर रात्रिमें प्रलय होताहे हे राजा शतानीक ! अब हम कल्प की संख्या कहते हैं अठारह निमेष अर्थात्‌ आंख के भप- कनेसे एक काष्ठा होती है अर्थात्‌ जितने काल में अठारह बार नेत्र का निमेष होय उतने काल को काछा कंहते हैं तीस काछा की एक कला तीसकला का एकक्षण बारह क्षणका एक महत्ते तीस महूर्त का एक दिनरात तीस दिन रात्रि का एक _. महीना दो महीनोंका एक ऋत॒ तीन ऋतुका एक अयन दो ... ब्यनका एक वर्ष होता है इसप्रकार सूय भगवान्‌ दिन रात्रि करके कालके विभाग करते हैं सम्प्ण जीव रात्रि को विश्ञवाम करते हैं और दिनमें अपने २ क्ममें प्रदत्त होते हैं इसीभौति .. पितरोंका दिन रात्रि एक महीने का होता है. अथात्‌ शुक्पक्ष .. रात्रि और कृष्णपन्न दिन होता है देवता्नोंका अहारात्र एक .. चषेका है अर्थात्‌ उत्तरायण दिन ओर दक्षिणायन देवता की रात्रि गिनीजाती है अब हम ब्रह्माजी के दिन रात्रि ओर यगोंका प्रमाण कहते हैं सत्ययग चारहजार वर्ष का है और ब्याठसोबर्ष उसकी सन्ध्या ओर सन्ध्यांश हैं अथात्‌ चारसी- वर्ष सन्ध्या और चारसो वर्ष सन्ध्यांश गिनाजाताहे इसी मौँति _.. तीनहजार वर्ष का त्रतायुग होता है और तीन २ सौव्षके उस -. के सन्ध्या सन्ध्यांश हैं दापर युग दोहजार वष का है और चार . सोव्ष दापरके सन्ध्या सन्ध्यांश हैं कलियुगका प्रमाण एक




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