बुन्देलखण्ड में विभिन्न प्रबन्धतंत्रों द्वारा संचालित कनिष्ठ माध्यमिक विद्यालय | Bundelkhand main Vibhinna Prabandh Tantro Dwara Sanchalit Kanishth Madhayamik Vidyalay
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
168 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अशोक कुमार तरसौलिया - Ashok Kumar Tarsauliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तहस्त्रों विद्वान आचार्य व्यक्तिगत रूप ते पारिवारिक प्रणाली पर छात्रों
को जिक्षा देते थे । विद्वान व प्रसिद्ध शिक्षकों के कारण दही ह्म भिक्षा केन्द्र
की इतनी ख्याति थी। भारत के कोने कोने से ही नहीं अपितु चिदेशों के
छात्र भी यहाँ विधाध्ययन करने के लिए आत्ते थे। कभी-कभी तो एक-एक
आचार्य के पातत 500 छात्र तक हो जाते भे। तक्षभिला उच्च शष्षा के शि
प्रसिद्ध था । लगभग 16 वर्ष की आयु के छात्र यहाँ पहुँचते थे। वेदान्त,
ठयाकरण, ज्योतिष विद्या, चिकित्सा विज्ञान तथा मैजिक विधा आष्ि यह
के विशेष अध्ययन के विषय थे। 600 ई0पू0 में तो यह 'जिक्षा केन्द्र अपनी
प्रा्ताद्स् की पराकाष्ठा पर पहुँच गया था।
नालन्दा का प्रधम संस्थापक सप्राट अशोक को ही कहा जाता हि)
नालन्दा विश्वविद्यालय का लगभग | मील लम्बा और आधा मील चौड़ा प्रम्पूर्ण
त्र एफ ववशाल व दृह चार दीवार ते घिरा था। इसमें 8 बड़े सभा भवन
तथा 300 अध्ययन कक्षधेये भवनैः मंणिलिंर्थे.। सक काल पुस्तकालय धा
चितये तथौ धर्मों, विषयों, कनाओं, विज्ञानों तथा कौशलों की अप्राप्य पुस्तकों
का प्रदर पषगरह धा। पुस्तकालय तीन खण्डौ रत्न सागर , रत्नोदधि* तथा
एत्नरजक थे। यहाँ का शिक्षा स्तर बहुत ऊँचा था इसी कारणं इघकी ख्याति
देश विदेशों में थी | तिल्बत, चीन, कोटिया, ब्रम्हा, जावा, सुमात्रा आदि अनेक
सुदूर देशी से छात्र तथा विद्वान यहाँ विद्याध्ययन के लिए आते थे।
5. मुस्लिम कालीन पिला :-
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भारत मे मुस्लिम शरासन कौ स्थापना के पूर्वं पँ बौद तथा
व्राम्हणीय श्क्षा पर्याप्त प्रचार यैं थी। प्रस्लिम युगम शिक्षा की व्यवस्था
मकतबों तथा मदरसों मँ की गयी।
पधरस्लिम सिष्ला पदति मेँ प्रारम्भिक भिक्षा प्रदान करने के लि
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