बड़ों के जीवन से शिक्षा | Bado Ke Jeevan Se Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराज टिलीपकी गो-भक्ति और ग़ुरु-भक्ति झरनेके पास एक बडा भारी सिंह उस सुन्दर गायको दबाये बेठा है। सिंहको मारकर गायकों छुडानेके लिये महाराजने घनुप चढ़ाया, किंतु जब तरकशसे वाण निकालने चले तो दाहिना हाथ तरकद्मे दी चिपक गया । आध्यं पडे महाराज दिरीपसे सिंहने मनुष्यकी भाषामें कहा-'राजन्‌ ! से कोई साधारण सिंह नहीं हूँ । मे तो भगवान शद्धरका सेवक हँ । अव आप रोट जाये । जिस कामके करनेमे अपना वस न चे, उसे छोड देनेम फो दोप नदीं होता । म भूखा हैं । यह गाय मेरे माग्यसे ही यहाँ आ गयी है। इससे में अपनी भूख मिटाऊँगा।! महाराज दिलीप बडी नम्रतासे बोले-“आप भगवान शइरके सेवक हैं, इसलिये में आपको प्रणाम करता हूँ । सत्पुरुषोंके साथ बात करने तथा थोडे क्षण मी साथ रहनेसे मित्रता हो जाती है । आपने जब कृपा करके मुझे अपना परिचय दिया है तो मेरे ऊपर इतनी कृपा ओर कीजिये कि इस गौको छोड दीजिये और इसके बदलेमें मुझे खाकर आप अपनी भूख मिटा लीजिये |! सिंहने राजाको बहुत समझाया कि एक गायके लिये चक्रवर्ती सम्रादको प्राण नहीं देना चाहिये । वे अपने गुरुप हजारों गायें दान कर सकते हैं ओर जीवनमें हजारों गायोंका पालन तथा रक्षा भी कर सकते हैं; किंतु महाराज दिलीप अपनी वातपर दृढ़ बने रहे । एक शरणागत गो महाराजके ( १५ )




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