उपासक आनंद | Upasak-aanand
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आनन्द की जीवन-नींति : ७
अन्न है और अन््ने उत्पंत्र करंने के लिएं” वह विशाल पैमाने
पर खेती कराता था। उसके यहां पाँच सौ हल की खेंती होंती
थी। भोजन की; दूसरी सामग्री घीदूध ;समभी ज़ा:सकती है.
ओर उसके:लिए भी -वह. प्रावल्लाब़ी;; नहीं था.।। उसके यहां
चालीस र्दजार.. गाये पलती. श्रीं ।-. गायो की. संख्या को
चतलाते हुये कहा गया है कि न
;.नचत्तारि वया, दसमोसाहस्सिएभं वएणं होत्या । ; ‹
अथोत आनन्द के यहां दम हजार गायों के एक ब्रज के
हिसाब से चारं ब्र॒ज॑ थे ! |
उसके यहां, की भसों क़ी संख्या को शात्रकार,ने नहीं
बतलाया -है.। तो, जिसके घर पाँच सो हल, चलते, हों और
चालीस हजार - गायं तथा . बहुत सी भसे हो; उसके यहां
अन्न; घी, दूध और छ/ाछ की क्यु कमी हयो सकती है,१ ऐसी
स्थिति. में उसकी , भोजनशाला में अपनी, आवश्यकता से भी
अधिक भोजन बनाया जाना और उससे याचकों एवं अनाथं
का पालन-प्रोषण होना स्वाभाविक ही है । লালাহ উ मोल
अन्न, घी, दूध, आदि खरीदने वालों में यह उदारता,आत़्ा
बहुत कठिन है । , , ... 4 |
नन्द् के यहं गायो ओर भैसोंके ' अतिरिक्त बंकरों,
नकरियों च्रौर भेडों की भी.णकं जडी संख्या थीः।: ` .
* प्रश्न हो सकता है कि जिसके यहाँ गायों और भेसों की
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