रेवती दान समालोचना | Revatidan Samalochana
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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No Information available about धीरजलाल के० तुरखिया - Dheerajlal K. Turkhiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ছু
रेवती-दान-समालोचना ध
रेवती, मेंढिक भाम मे रहने बारी एक गृद्िणी (गृहस्थ. खी) थी जिसने
महावीर स्वामो के किए, सिंह अनगार को ओषध दान दिया धा । रेवती
द्वारा दिये हुए दान के विपय में किन्हों-किन्हीं को आशंका. है । किसी को
'कहना है कि उसने 'मांस' दिया था और कोई-फोई कहते हैं कि मांस
नहीं बल्कि वनस्पति के फल वगैरह से बनी हुईं दवा दी थी। इन दोनों
पंक्षों में से कौन सा पक्ष सत्य भौर कौन सा असत्य है ? इसका विशेष
“सूप से आरोचन और प्रमाण पूर्वक विचार किया जाता है ॥ १ ॥
वीर को रोगोत्पत्ति
महावीर स्वामी के शरीर में रोग को उत्पत्ति होना रेवती के दान का
निमित्त খা সী रोग का कारण था--गेशालक के दर महावीर स्वामी
पर फेंकी हुई तेशे लेश्या । इ-ी बात को बतल्ाते हैं--
गोशालक के द्वारा-मगवान को ओर फैंकी हुई तेजो लेश्या
ने यद्यपि वीर भगवान् को स्पशं नहीं किया, तो भी उससे उद
च्यथां ( रोग जन्य पीडा ) हो गहै ॥ २॥
इसका विस्तृत विवरण भगवती सूत्र के षन्दषटवे कतकं উই । অহা
'सिफ़ प्रकरण बताने के लिए संक्षेप में कह दिया-है। गोशालक के द्वार
फेंकी हुई तेजो छेश्या का महावीर स्वामी के शरीर के साथ स्पश नहीं
हुआ था[--शरीर के पास से ही घह छौट गई थी । फिर भी समीप तक
जाने के कारंण उसने आधात उत्पन्न कर दिया और इसी कारण डंसे
रोग की उत्पत्ति का कारण कहा गया है ॥ २॥
, रोगका स्वरूप
'* अहादीर' स्वामी को कैसे! रोग हुआ था, यह बताते हैं---
तेजो लेश्या समीप श्रान्ते से भगवान् वीर,के शरीर में पित्ते
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