आचार्य कुन्दकुन्द | Acharya Kundkund

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1. युग-प्रधान आचार्य कुन्दकुन्द आद्य सारस्वताचार्य प्राचीन श्रमण-परम्परा के विकास में आचार्य कुन्दकुन्द का नाम अहनिश स्मरणीय तथा सारस्वताचार्यों से प्रधान माना गया है। उनका महत्त्व इसमे नही कि वे मन्त्र-तन्त्रवादी थे और चमत्कारो के बल पर वे भौतिक सुखो को प्रदान करा सकते थे। इसमे भी उनका महत्त्व नही कि वे शस्त्रास्त्रो अथवा किसी सशक्त राजनीति एवं पराक्रम के बल पर अपनी या अपने अनुयायियों की भौतिक महत्त्वाकाक्षाओ को पूरा कर सकते ये । इसमे भी उनका महत्त्व नही कि उन्होंने आकाश-गर्मन से पृव॑-विदेह की यात्रा कर सभी को चमत्कृत किया था | उनका वास्तविक भहत्त्व तो इसमें है कि जड-भौतिक सुखो को क्षणिकं एवं हेय समझकर उन्होंने अपनी उद्दाम- यौवन से तप्त कचन-काया का प्रखर तपस्या मे भरपुर उपयोग किया और अपनी चित्तवृत्ति को केन्द्रित कर आत्मशवित का सचेय किया तथा पर- पीडा का अनुभव कर उनके भवताप को मिटाने का अथक प्रयत्न किया । उन्होने भपनी अण्यात्म-योग-शक्ति के उस अविरल सोत को प्रवाहित किया, जो शाश्वत-सुख का जनक है और जिसने अध्यात्म के क्षेत्र मे अपनी मौलिक पहिचान वनाई । यही कारण है कि तीर्थंकर महावीर एवं उनके प्रधान गणधर गौतमस्वामी के वाद, आत्म-विज्ञान, कर्म॑विन्ञान एव अध्यात्म-विद्या के क्षेत्र मे वे एक अमिट शिलालेखके स्प मे पुथ्वी-मण्डल पर अवतरित हुए | श्रमण-सस्क्ृति के इतिहास मे वे युगप्रचरतक, युगप्रधान तथा आद्य सारस्वताचार्य के स्प मे प्रसिद्ध है ।




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