जैन हिन्दी पूजा काव्य परम्परा और आलोचना | Jain Hindi Pooja Kavya Parampara Aur Aalochna
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
410
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ॰ आदित्य प्रचन्डिया - Dr. Aadity prachandiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भक्ति, विधि-विधान, भावपृजा, द्रव्यपूजा, जैत पक्षों का बहुत 'ही सुन्दर
विश्लेषण प्रस्तुंत किया हैं तथा पूजा साहित्य की रसयोजना, प्रकृति-चित्रण,
अलंका रयोजना, छंदोयोजना, प्रतीक-योजना, भाषा, मनोविज्ञान, संस्कृति,
नगरवर्णन, वेशभुपा, आभूषण एवं सौन्दये प्रसाधन, बाद्ययंत्र जैसे विपयों का
जो वर्णन इन जैन पूजाभों में मिलता है उन्न सबका सविस्तार अध्ययन प्रस्तुत
करके जैनपूजा साहित्य को काव्य की धरातन पर ला बिठाया है।
डॉ० आदित्य प्रचण्डिया के अनुसार ज॑न हिन्दी पूजाएँ सभी दृप्टियों से
उल्लेखनीय हैं। वे धामिक साहित्य के साथ-साथ लोविक वर्णन से भी ओत-
उप्रोत है ।
डाँ० आदित्य प्रचण्डिया ने स्त्रीकारा है कि पूजा काव्यों में यद्यपि 'शांत
रस का परिपाक हुआ है लेकिन उनमें शोभा-श्र गार, उत्साह-वीर एवं करुण
रस के भी अभिदर्शन होते हैं । जैन पूजा साहित्य की भाषा आलंकारिक होती
है । शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों से ही वे ओतप्रोत है। डॉ० आदित्य
ने इन अलंकारो से युक्त पद्यौ का सविस्तार वणन किया है। छंदशास्त्र की
हृष्टि मे भी इन पूजां मे महत्वपूणं सामग्री उपलन्ध होती है । वास्तव में
जैन कवियों ने इन पूजाओं में विविध छन्दो का प्रयोग किया है तथा उसे
वर्तः गेय बना दिया है । |
भाषागत अध्ययन के लिए हिन्दी जैन पूजाएँ किसी भी शोधार्थी के लिए
महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध कराती हैं । पूजा साहित्य की भाषा अपने समय
की समस्त भाषाओं, विभाषाओं एवं वोलियों के मधुर सम्मिश्रण से प्रभावी
रही है। डॉ० आदित्य प्रचण्डिया ने इन सबका विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया
है जिससे उनका यहे शोधप्रबन्ध बहुत्त ही उपयोगी बन गया है। गत तीन
शताब्दियों में विभिन्न क्रियापदों की मात्रा किस प्रकार आगे बढ़ती रही इसका
भी उन्होंने अच्छा अध्ययन किया हैं। जैन पूजाये मनोविज्ञान के गुग से भी
ओतप्रोत है तथा पूजक को पूजा करते समय एक भिन्न प्रकार का मनो-
वैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और वे उसमें विभिन्न अवस्थाओं के भाव भर
देती हैं । है
डॉ० आदित्य प्रचण्डिया डॉ० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया के सुपुत्र है । डॉ०
महेषप्र सागर जी समाज एवं साहित्यिक अगत में अपने चिन्तन, मनन एव
लेखन के लिए झ्याति प्राप्त विद्वान हैं और वे ही गुण डॉ० आदित्य में उतर
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