उपमिति - भव - प्रपंच कथा भाग - 1 | Upamiti - Bhav - Prapanch Katha Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
1222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रस्तावना
मनस और चिन्तन करके, अपने आचरण को शुद्धभाव रूप मे परिणमित कर लिया।
श्रौर वह सन्मागे प्र श्रा लिया, तो मै अपने इस परिश्रम को सफल हुआा मानू गा ।
संस्कृत भाषा एवं साहित्य का विकास-क़म
'सम्' उपसर्ग पूर्वक @ृ' घातु से निष्पन्न शव्द है--- संस्कृत' । जिसका बर्थ
होता है ~ 'एक ऐसी भाषा, जिसका संस्कार कर दिया गया हो 1' इस संस्कृत भाषा
को देववाणी' या सुरभारती भ्रादि करई नामो से जाना/पहिचाना जाता है । श्राज
तक जानी/वोली जा रही, विश्व की तमाम परिष्कृत भाषाग्नो मे प्राचीनतम भाषा
'सस्कृत' ही है। इस निर्णय को, विश्वभर का विद्रदवृन्द एक राय से स्वीकार
करता है।
भाषा-वेज्ञानिकों की मान्यता है कि विश्व की सिर्फ दो ही भाषाएं ऐसी है,
जिनके बोल-चाल से संस्क्ृतियों/समभ्यताओो का जन्म हुआ, श्रौर, जिनके लिखने/
पढने से व्यापक साहित्य/वाड मय की सर्जता हुई। ये भाषाएं है--आर्य भाषा' और
सेमेटिक भाषा । इतमे से पहली भाषा आ्रार्यभाषा' की दो সমু णाखाए हो
जातो है--पूर्वी और पश्चिमी । पूर्वी शाखा का पुनः दो भागों में विभाजन हो
जाता है। ये विभाग है--ईरानी श्र भारतीय ।
ईरानी भाषा में, पारसियों का सम्पूर्ण मौलिक घामिक साहित्य लिखा पड़ा
है। इसे 'जेन्द श्रवेस्ता' के नाम से जाना जाता है । भारतीय शाखा मे “स्कृतः
भाषा ही प्रमुख है। जेन्द अवेस्ता की तरह, सस्कृत भाषा में भी समग्र भारतीय
घामिक साहित्य भरा पड़ा है। आज के भारत की सारी प्रान्तीय भाषाएं, द्रविड
मूल की भाषाओं को छोड कर सस्कृत से ही नि.सृत हुई है । सस्कृत, समस्त श्राय॑-
भापाश्रो मे प्राचीनतम ही नही है, वत्कि, उसके (ब्रायंभापा के) मौलिक स्वरूपं
को जानने/समभने के लिये, जितने अधिक साक्ष्य, सस्क्ृत भाषा में उपलब्ध हो जाते
है, उतने, किसी दूसरी भाषा मे नही मिलते !
द ह के अन्तर्गत ग्रीक, लैटिन, ट्यूटानिक, फ्रेच, जर्मन, अंग्रेजी
आई सारो यूरोपीय भाषाये सम्मिलित हो जाती है। इन सब उद्गम
द सारौ वे का मूल उद्र
भ्रायमाषा' है 1 ই न नी
सर्कत भाषा के भी दो रूप हमारे सामने
यानी लोकमाषा । वैदिक सहिताओ से लेकर वाल्मीकि
| के श्नं तके का सारा साहित्य
वेदिक भाषा में हैं। जब कि वाल्मीकि से लेकर श्रद्चन्तनीय सस्कृत নামী
का विपुल साहित्य 'लौकिक सस्रत मे भिना
ह॥ ल्कवकफल लय प्रा फद् _+---- उपभिति-भव-प्रपञ्च कथा-- प्रथम अस्ताव, पृष्ठ १०३ ।
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