महात्मा गांधी की सेवा में | Mahatma Gandhi Ki Sewa Mein
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय प्रवेश ` ७
ओर बढ़ता रहा है । उसकी चाल चहि कितनी भी धीमी रही
हे।, वह उत्तरोत्तर आगे ही वढ़ता रहा है। अवश्य हो उसका
मार्ग ज्यामिति की सीधी रेखा मे नहीं है। उसकी गति के
धाँप की चाल से उपमा दी जा सकती है, जे। दायीं-बायीं ओर
वल खाता हुआ चलता है, और कभी-कभी किसी बाधा के
कारण रुकता सा भी नज़र आता है, लेकिन फिर भी अपने
लक्ष्य की ओर चलता रहता है।
पूरे मानव समाज की गति का विचार करते हुए हमें चाहिए
कि हम विशाल दृष्टिकोण से काम लें। देश काल की छोटी
छोटी इकाइयों से काम नहीं चलेगा | एक साल या एक सदी
मानव समाज की आयु मे ऐसे ही है जैसे किसी आदमी के
जीवन में एक दिन या एक महीना | किसी बालक की एक दिन
या एक महीने की रिपोर्ट देख कर उसके भविष्य का हिसाब
लगाना कभी-कभी बहुत ही भ्रमम्लक हो सकता है । सम्भव है,
उस दिन या उस महीने वालक कुछ अस्वस्थ रहा हो। अथवा,
यह भी हो सकता है'कि जिस बालक का हम विचार कर रहे
है, वह नमूने का काम न दे सकता हो, यानी वह अपने वगं
का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व न करता हो। इसलिए चाहे जिस
बालक की एक या अधिक दिनों की दशा देख कर यह कह
बैठना असंगत है कि वाल-समाज अपनी आयु बढ़ने के साथ-
साथ कमज़ोर होता जाता है। इसी तरह मानव समाज की
कुछ पीढ़ियों के इतिहास के आधार पर यह अडुमान करना
भी ठीक नहीं कि वह प्रगति नहीं कर रहा है। यदि हम व्यापक
दृष्टि से सिंहावलोकन करें तो हमें मालूम होजायगा कि मानव
समाज निश्चित रूप से आगे वदता रहा है ।
इस पुस्तक के पहले खंड में इसी विषय पर विचार होगा।
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