प्रेमसुधा पंचम भाग | Prem Sudha Part-5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उपदेशरचि-सम्यक्त्व ६
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नफे के तार और पत्र आते हैं । অন आत्मा में सम्यक्त्व का आविभांव होता है
पो उखकी चमक से आत्मा निखरने लगती है, शरीर वस्तु का यथावत् निय
होता जाता है, और जब मिथ्यात्व का उदय होता है तो उसकी श्रद्धा हर्ती जाती
है | जैसे यह अग्ल सत्य है कि भूतकाल में अनन्त तीर्थंकर हो चुके हे,वत्तेमान
मे विदेह चेच म वीस तीर्थकर विद्यमान रै! वहा त्तीथेकर और सामान्य केवली-
दोनों प्रकार के जिन होते हैं। वे कम से कम दो करोड़ तो होते ही हैं। मविष्य में
भी श्रनन्त होगे | परन्तु जिसके दशैन की स्थिति डावाडोल होती है,वह ऐसी बातो
पर विश्वास नहीं करता । समभता है कि यह सब मिथ्या है | वह किसी सिद्धात
का निर्णय नहीं कर पाता | श्रतएव ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि सम्यक्त्व के विषय
मे जागरूक रहना चाहिए, 1 इसे खूब संभाल कर रखना चाहिए, जिससे चरित्र
रूप फले की प्राप्ति हो स्के |
मैने बतलाया है कि फूल के बिना फल की प्राप्ति नहीं हो सकती | सम-
कित सुन्दर फूल हैं तो चरित्र और तज्जन्य मोक्ष उस का फल है ।
दूसरे लम्बर पर उपदेशरुचि অন্ত ই, जिस की प्राप्ति उपदेश सुनने
से होती है । जैसे भूख लगने से; भोजन को देखने से, पेट खाली रेने से
ओर भोजन की बाते सुनने से भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है । दसी तरह
अगर आप भगवान् की वाणी और समकित की बातें सुनेंगे तो आप को उसे
प्राप्त करने की इच्छा होगी | वह इच्छा उपदेश सुनने से होती है। एक नहीं,
अनेक आत्माए उपदेश सुन-सुन कर मोक्ष पा चुकों । आज भी जीवों को जो
सम्पक्त्व मिला है, उसे वे सभी पहले से ही लेकर नहों आए थे। प्राय
उपदेश से ही समकित की प्राप्ति होती है ।
जो भगवान् के वचनों मे विश्वास करते वाले हैं, वे ही यदि उलदी कथा
करे तो इससे लोगों का सम्यक्त्व दूषित हो जाता है । देखिए न, श्राजकल
चदन सामयिक मे भी कहती ই--লাই जी, आज कोई वणायो £ खायो
बणापो + - श्रादिः्रादि नरथक मक्त कथा करती हं! परन्तु श्री भल्ली
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