प्राचीन राजस्थानी गीत भाग - 10 | Prachin Rajsthani Geet Bhag-10

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Prachin Rajsthani Geet Bhag-10 by मोहन सिंह -Mohan Singhसांवलदान आशिया - Sanvaldan Aashiya

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सांवलदान आशिया - Sanvaldan Aashiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ प्राचीन राजस्थानी गीत अर्थ-राठौंड़ राज वीर असरसिह दिल्लीश्वर के सेनापतियो' का अग्रसर. अपने वंश का दीपक और राजाओ' की হীলা ই। জন धारण किए हुए यह मालदेव के बंशजों का तिलक और रणमल के वंशजो का सिरमौर सा भासित टता है ॥ £ ॥ यह गजसिह का पुत्र अपने उच्च आचरण से प्रथ्वी पर सुशो- भित है ' युद्ध छिड़ने पर वलवान शत्रुओं को यह पीछे हटा देता है । संसार के वाहू ूपी वीर उसके विजयी हार्थो की बन्दना करत रहते हैं । उमीलिए्‌ इसके विस्द विश्व-कंदनीय ह 11 511 ` यह्‌ सूरसिह का वंशज सूरसिह के समान प्रसिद्ध॒ योद्धा; मत्तानी ग्वय॑ समुद्र के समान अश्वारोही सेना की थाद् लेने वाला है . आकाश को उठाने जैंसी इसमे शक्ति हे, इसका अभंगपन अथाह और असीम द ' उच्च वीरों में यह श्रेष्ठ हू । विशेष शत्रु-समृह में इसके शस्त्र रक्तपात कर देते हूँ ॥ ३ ॥ इस नूतन चूंडा के जोश भरे यश के नक्कार वजते रहते हैं. । वीर समूह में यह्‌ जोधा का वंशज मस्ती स भरा हुआ शोभा पाता है । इस नरेश का मस्तक हिलते हुए चमरों और मेघाडम्बर ( छोटा छत्र ) कि से मुशोभित रहता है 1 ४2 ॥ পি राठोड़ अमरसिह आसकरणोत ( कूपावत ) - गीत २ :- बलि भरियों परा त्रिसींगा वाले, फलि चाले कालौ कहर | वासौ वसं सु नह बैरी हरि, ओरि से बाहर গ্রদ 111)




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