अरुणरामायण | Arun Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आअदणरामायण भौतिक, आध्यात्मिक गति के शुअश्र मिलन की जय सत्यानुवूल सचित समस्त साधन की जय आधारित सदाचार पर जो, उस रण वी जय आनन्द-निनादित समतामय गासन की जय मानवता की जय ही जीवन की महाविजय पद्ु-पक्षी-हित भी बने नहीं मानव निर्देय आलोवित झौय॑ करे जीवन-तम का विनाक्ष फले पृथ्वी पर सत्य-मजग उज्ज्वट प्रका ! उत्प्रेगित करे अतीत कि सुधरे वर्तमान जगमगा उछे इतिहास-ज्योति से प्राण-प्राण चारित्रिव महिमा धारण बरे विव्व-मानव सात्विकता को तज करन वेने वह्‌ फिर दानव व्यापक विश्वास-चेतना को नर तजे नटो. कत्त व्य-विमुख हो प्रश्ु को केवछ भजे नही केबल कर्मो में ही न उछय जाए जीचन, आत्मिक प्रणान्ति के लिए करे नर आराधघन अपने वो समझे वह भीतर से--वाहर से आत्माभा को भी देखे वह अन्तरतर से ! -“वाल्मीकि-क्मल पर रख कर पावन तुलमी-दल अपित दर बुछ अपना भी, कौन काव्य-बिह्वट ? चेष्टा यह अनधिकार क्सिकी ? वह কীন নাত ? कंसे बह्‌ पार करेगा वाव्याम्ुधि विलाल ? नास्तिव युग मे आरितिक दुरसाटम यह्‌ विसका ? मासो मे कंसे युचि सौरभ सहसा गमका ? किमि काव्य-तपरया का पुनीत फर मिटा आज ? कामना-पक मे कंसे पक्ज खिटा आज ? क्सिवी यह अनुकम्पा कि प्राप्त पावन प्रसाद ? मन ने वैसे कर लिया ग्रहण दिव्यात्मवाद ? उमिल उर मे विद्या-विवेक की क्रिण नही वैप्णवःविधानमय भक्तिमिष्ठ आचरण नही जग का सामान्य ज्ञान भी ज्ञात नही मन को हस बी झुअ्रता भाप्त नही वक्‍-जीवन को ! र्‌




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