तूफान यात्रा | Tufan yatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महारा से विदां ६ 8 “हमारी गरज यह नहीं है कि सरकार हमारी मदद करे) बल्कि यह है कि सरकार का रग बदले, सारी प्लार्निग का रग चदे । आज जिनफे हाथ में हमारा नियोजन है, उनकी बुद्धि टिकाने पर नहीं । वे हतप्रभ से दौखते हैं | प्टानिंग-कमीशम में धब्रराहट नजर आती है। सारे देश में डॉँवाडोल स्थिति है | मुझे लगता है क्लि अगर हमने स्थिर बुद्धि और निर्देर तथा अछुब्ध चित्त से काम नहीं क्या तो आजादी ही गंवा देगे |” बाबा मयठी में बोल रहे थे और महाराष्ट्र के ल्गमग ढाई सौ कार्य कतां जौर सर्वोदय प्रेमी मत्रमुग्ध हो सुन रहे थे। सयषे चेहरे पर खुशो ओर आत्मविश्वास की झलक थी | जुलाई और अगस्त में लगभग ६ हफ्ते के अन्दर उन्होंने २४२ आमदान प्राप्त ऊिये थे | सवा सो अक्रोल्ा जिले मे ओर अस्सी यवतमाटमे ओर बाकी चाँदा, नागपुर व अमरावती जिले में । यह वह इलाका है, जो बहुत ही उपजाऊ माना जाता है और जहाँ कपास की बेहतरीन सेती होती है । जब बाबा को बिह्वारवालों ने ११ सितबर को बुलाने का तय किया, तो महाराष्ट्र के मिर्तों ने उनके समय का उपयोग कर लेने वी ठान ही। इस प्रकार बिहार के लि, निकलने के पहले बाबा की यात्रा सवा महीने तक महाराष्ट्र में चली | छोम ओर दान इस छत के लिए निकलने पर महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ सजन से बाया कौ मेर हुईं { उनको ज पता चल कि बाबा वरार जानेवाले हैं तो उन्होंने कहा * “अगर आपको आमदान चाहिए तो बालाघाट आदि ভিউ ज्यादा ठीऊ रहेंगे, लेकिन दमारे दयर में ठो जमीन बहुत महेँगी भी है और वहाँ जमीन का लोभ मी ज्यादा है 1” बाबा ने जवाय दिया:




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