स्वाधीनता | Swadhinta

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Swadhinta by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३) जागृत कर दिया; उनकी विवेचनारूपी तलवार पर जो मोरचा रूग गया था उसने जड़ से उडा दिया। मिल के अन्थों में स्वाधीनता, उपयोगितातत्त्व, तकेशाख्पद्धांते और स्त्रियों की पराधीनता-इन चार ग्रन्थों का बड़ा मान है । इन पुस्तकों में मिल ने जिन विचारों से-जिन दढीलों से-काम लिया है वे बहुत प्रबल और अखण्डनीय हैं । ये ग्रन्थ सब कहीं प्रीतिपु- वेंक पढ़े जाते हैं । स्वाधीनता में मिल ने जिन सिद्धान्तों का प्रति- पादन किया है वे बहुत ही दृढ प्रमाणों के आधार पर स्थित हैं । यह बात इस पुस्तक के पढने से अच्छी तरह मालूम हो जायगी । इस पुस्तक में पांच अध्याय हैं। उनकी विषय-योजना इस प्रकार हैः-- पहछा अध्याय प्रस्तावना । दूसरा अध्याय वचार ओर विवेचना की स्वाधीनता । तीसरा अध्याय व्यक्ति-विशेषता भी सुख का एक साधन है। चौथा अध्याय व्यक्ति पर समान के अधिकार की सीमा | ঘালনা अध्याय प्रयोग । मिल साहब का मत है कि व्यक्ति के बिना समाज या गवने- मेंट का काम नहीं च्‌ सकता ओर समान या गवर्ममेट के निना व्यक्ति का काम नही चर सकता । अतएव दोनो को परस्पर एकं दूसरे की आकांक्षा है । पर एक को दूसरे के काम में अनुचित हस्तक्षेप करना मुनासिब नहीं । निप्त काम से किसी दूसरे का सम्बन्ध नहीं उसे करने के लिए हर आदमी स्वाधीन है। न उसमें समाज ही को कोई दस्तन्दानी करना चाहिए और न गवर्नमेंट ही




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