मगध | Magadh

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Magadh by श्रीकांत वर्मा - Shreekant Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काशो का न्याय सभा बरस्ास्त हो चुकी सभासद चलें जो होना था सो हुमा अब हम, मुंह क्यों लटकाए हुए हैं? क्या कशमकश है ? किससे डर रहे हैं? फैसला हमने नहीं लिया-- सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नही होता हमने तो सोच-विचार तक नहीं किया बहसियो ने बहुस की हमने क्या किय! ? हमारा क्या दोष ? न हम सभा बुलाते हैं न फंसला सुनाते हैं दर्षे मे एक बार काशी आते हैं-- सिफं यह कहने के लिए कि सभा बुलाने की भी आवश्यकता नही हर व्यक्ति का फंसला जन्म के पहले हो चुका है 1984 मगघ / 17




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