प्राकृत - विमर्श | Prakrit - Vimarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस ग्रकार स्वच्छुंद प्रयोगों के लोप होने पर आर्य भाषा के ली किक
मध्यकालीन रूप प्राकृत का विकास होना आरंभ हुआ । परन्तु इन
प्राकृतों ने ग्राचीन और प्राचीनतर आये भाषा का विशेषताओं की
ही अ्रपने विकास का मुख्य आधार वनाया | इसीलिये संस्कृत तथा
प्राकृत के वय्याकरणों ने धप्राकृ१ः के विकास और विश्लेप्रण मे संस्कृत
भाषा को ही उसका आधार माना है। पिशेल ने यह स्पप्ट किया दे कि
कुछ व्याकरण 'श्राकृतः शब्द के विश्लेपण-प्राक+कृत-पहले बनी
भाषा के आधार पर इसे संस्कृत स भी प्राच्ीनतर मानत हैं | रूद्रट कृत
काव्यालंकार के आलोचक नमिसाधु ने शिक्षिता की परिमाजित भाषा
संस्कृत को छोडकर सर्बंसाधारण लोगो मे प्रचलित और व्याकरण
आदि नियमी स रहित स्वाभाविक वचन-व्यापार का प्राकत भाषाओं
का मूल आधार माना है--.“प्राकृतत | सकलजगज्जस्तुना व्यकरणादि
भिरनाहितसस्कार: सहजो बचन-व्यापार: प्रकृतिः तत्र भवः सैव वा
भाकृतम् ।” इस प्रकार “प्राकत! स्वाभाविक रूप म विकसित अपार-
माजित भाषाओं का एक अलग समूह माना जा सकता ६। “प्रकृति!
का आशय यदि स्वाभाविक अथवा नेसाभिक विकास स लिया जाय
तो भी प्राकृत भाषाओं की प्रकृति के मृल में कोई न कोई भापा अवश्य
होगी जिसका आधार लेकर प्राकृतों का त्रिकास हुआ, वह भाषा संस्कृत
मानी गई है। परन्तु अनक वस्याकरणा का उक्त अथे मं संस्कृत स
आशय भारतीय प्राचीन आये भाषा स ही हो सकता हैं जिसमे उसका
प्राचीनतर साहित्यिक रूप-वादक और उसक अनंतर प्रचलित लोक-
भाषा रूप भी सम्मिलित है। इस प्रकार सस्कृत भाषा का आधार लेकर
विभिन्न कालो ओर विविध स्थानो को भाषाए अनेक द्राकृत-रूपों भ
व्यक्त हर्द
प्राकत का संस्कृत से संबंध-धोतन कराने के लिये वय्याकरणों
ने कई उल्लेख दिये ईह । “सिहदेवमणिः ने व्वाग्मह्वलंकार टीकाः
मे संस्कृत के स्वाभाविक रूप से प्राकृत का विकास दिया है--
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