सृजन और अंतर अनुशासनीय परिप्रेक्ष्य | Srjan Aur Antar Anushasaniy Paripreykshya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 सृजन भरर प्रंतर-भनुशात्तनीय परिषेक्ष्य
महत्व पा सका है। विचार भौर ज्ञाव की फमी के कारण भनुभव की तीव्रता होते
हुए मी प्रपिकःद कवि घोड़े सप्रम के बाद भपने को बार-बार दोहराने लगते हैं।
विचार की प्रादृत्ति वार-बार होने से रचना एक प्रायामिक (दन-ढाइमेग्शनल) ही
रह जाती है चादे वह मावसंवादी दिचारघारा हो, वामपंथी प्रावेस हो, समाज
शास्त्रीय विचारपाराएं हों प्रयदा मनोव॑ज्ञानिक विचार हों । रचनाकार विचारः
धारापों प्र “संतरण करता है भौर जद वह् किसी एक सिद्धान्त या विचारधारा
(चाहे वह् मानसंवादीदहीरमर्योनहो) से भ्रन्यधिक সান হী আতা ই, বন বৰা
तो भ्रपने को दोहराता है या जल्दी “चुक” जाता है । धूमित कभी “संसद से सड़क”
तक भोर कभी सड़क से धंसद तक के बीच चयकर लगाया करते हैं। घुमिल ही
नही पर जुड़ी, भजामिल, ललित शुक्ल, सौमित्र मोहन, प्रोमप्रकाश निर्मल प्रादि
कवियों का यही ह्न हो रहा है। कोई भी विचारधारा या सिद्धान्त प्रन्तिम सत्य
नही है क्योकि वहू तो सत्य को समभने का एक “कोए” मात्र है व्यवस्था ग्रिप,
प्रस्वीकार, क्रांति, फूदड़ बोघ इतिहांस बोघ परम्परा विरोध ये कुछ ऐसे विधार
या प्रवधारणाएं हैं जो भामतौर पर समकालीन कविता के श्रमुख मिजाज को
व्यक्तं करती ह ।. भरतः इसे विरोध की कविता भी कहा जा सकता है जो विरोष
के दर्शन को प्रस्तुत करती है । यह विरोध का दर्शन परिवर्तेन भौर बदलाव का
विचार है जो ऐतिहासिक प्रक्रिया का एक अप्वश्यक तत्व है। इस विरोध में व्यंग्य
झोर तड़प है जो शोपण की प्रक्रिया को व्यवत करती है :--
मुझ में तड़प॑ रही है
वाणी रहित होने की स्थिति
मुह से टपक् रहा रक्त
झौर तुम तालियां पीदते
कब तक मांपते रहोगे मेरी यातना
( बलदेव वंशी )
दूसरी ओर जगूड़ी की ये पंक्तियाँ
“'यहू ठीक है कि समय सबको प्रपने
दांत मार रहा है
लेकिन घाव भौर पीड़ा का समाज
केवल धरेल् भरादमी ढो रहा है ।”
(जगी, नाटक जारी है, पृ 26)
ऐसे अनेक उदाइरण दिये जा सकते हैं जो भनुभव की तीद्रता भौर वस्तु
स्थिति से सीघा भोर बेबाक साक्षात्कार है। इस सारी प्रक्रिया में “विचार” का
सलिल प्रवाह है, पर उसका स्वरूप प्रच्छन्त है. वह मुक्तिबोध तथा निराला के समान
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