प्रेम में भगवान् | Prem Me Bhagwan

Prem Me Bhagwan by श्री जैनेन्द्र कुमार - Mr. Jainendra Kumar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

Add Infomation AboutJainendra Kumar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पे प्रेस में सगवान्‌ सो उसीके लिए हमे रहना चाहिए । उसके निमित्त रहना सीख जाओं कि फिर कोई क्लेश भी न रहे । फिर सब सहल हो जाय न सुनकर मार्टिन कुछ देर चूप रहा । फिर बोला--+ पर ईश्वर के लिए रहना कैसे होगा ? त्ृद्ध ने उत्तर दिया-- सन्त लोगो के चरित से पता लग सकता है कि ईश्वर के लिए जीने का भाव क्या है । अच्छा तुम बॉँच तो सकते हो न। तो इजील की एक पोधी ले आना । उसे पढ़ना । उसमें सब लिखा है । उससे पता लग जायगा कि ईइवर की मर्जी के अनुसार रहना कसा होता हूं | यह बचन मार्टिन के मन में बस गये । उसी दिन वह गया और बडे छापे की इजील की पोथी ले आया भौर बॉचना दुरू कर दिया | पहले विचार था कि छुट्टी के द्विन सातवे रोज पढा करूँगा । लेकिन एक बेर पढना शुरू किया कि उसका मन बडा हल्का मालूम हुआ । सो वह रोज़-रोज पढने लगा । कभी तो पढने में इतना दत्तचित्त हो जाता कि लालटेन की बत्ती धीमी पडते-पडते बूझ तक जाती तब कही पोथी हाथ से छूटती । देर रात तक पढता रहता । और जितना पढता उसे साफ दीखता कि ईश्वर की आदमी से क्या चाहना है और ईरवर में होकर आदमी को कंसे जीवन बिताना चाहिए । उसका दिल खूब हलका हो गया था । पहले रात को जब सोने लेटता तो मन पर बहुत बोझ मालूम हुआ करता था । बच्चे की याद करके वह बडा शोक मानता था । लेकिन अब वह बार-बार हल्के चित्त से यही कहता कि हे भगवान तू दी हू । तू ही जगदाघार है । तेरा ही चाहा हो । उस समय से मार्टिन की सारी जिन्दगी बदल गई । पहले चाय पिधा करता था और कभी-कभी दारू भी ले छेता था । पहले कभी ऐसा भी हो गया है कि किसी साथी के साथ जरा ज्यादा चढा आये और आकर वाही-तबाही बकने लगे और खरी-खोटी कहने छगे । लेकिन अब यह सब वात जाती रही । जीवन मे उसके अब शान्ति आ गई और आनन्द रहने लगा । सबेरे वह अपने काम पर बँठ जाता भौर दिनभर काम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now