छन्द राउ जइतसी रउ | Chhand Rau Jaitasi Rau

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Chhand Rau Jaitasi Rau by शक्तिदान कविया - Shaktidan Kaviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्ररतावना [हगल राजस्थान की वह परिनिस्टित प्रॉजलन एवं प्रशस्त भाषा है जिसका पना विशाल श॒ द-कोश तथा व्याकरण है। निजी रोतियात्त्र कै आधार पर रचा गया बविघ विषयक्र विपुत्र साहित्य इस समृद्ध भाषा की अपनी निधि है जिसकी समता पर-यत्र दुलभ है | ऐनिहासिक वी रका-य॑ तो मानो डिंगल की बपौती ही है। डिंगल का शाग््कि अथ ही ठोस, भारी अयवा बलशाली होता है। वीरभूमि राजस्थान में ऐतिहासिक वी रका य का प्रभूत प्रणयन तो स्वाभाविक बात हैं। राजस्थान की धरतो अपने ऊपर गजन करने वालो का रक्त थी जाती है सभवत इसीलिए बादल मो यहाँ गाज कर बरमने में भय खाते हैं। स्वाधीनता सग्राम के अग्रणी जनक वि झक रदान सामौर छत यह दोहा पठनीय है--- पाषी रौ काई पिय रगत पियोडी रज्ज । सक मन में आ समझ घण नह बरस गज्ज 11 वस्तुत उत्तरकालीम अपध्रणश के वाद डिग> साहित्य वितरित होने लगा और उसका प्रक्थ-कान था विक्रम की पद्रहवी शताब्दी । इसी काल में विशुद्ध ऐतिहासिक काया का विपुल मात्रा में निर्माण प्रारभ हुआ। वीरभोग्या वसुघरा सूत्र क अनुसार बीरत्व का बदन अभिनदन करने की यहाँ प्राचीन काल से परम्परा रही है । वीर पुरुष वी श्रेष्ठता सिद्ध करने वाला प्राइत पगलमू (14 वी शताब्दी ) ग्रप का एक दोहा उल्लेखनीय है-- सुरतद सुरही परसमणि णहि वीरेस समाण | ओ वक्‍कल अर कठिण तथु औ प्चु औ पासाण ॥। बर्धात्‌ कत्पवृक्ष सुरमि मौर पारसमणि ये तीनों ही वीर पुरप की ततना मे नहीं ठहर्ते कोक एक वल्क न युक्त कठोर तन वाना दूसरा वगु मौर तीमरा पापा है। ऐतिहासिक दी रका य वस्तुत डिंगल साहि य का हृदय है | डिगल के ऐतिहासिक प्रबधकायों की विशेषताओं के सदभ म राजस्थान के इतिहासकार प रामकरण जी आसोपा के ये शा द द्रष्टव्य हैं-- “राजपूताना का दतिहास जेँंसा डियल भाषा में वणित है वक्षाअ य किसी भाषा मे उपल-्ध नही है । कारण यह कि डिंगल भाषा शाजस्थानों भाधा है और यह्‌ स्रवप्तम्मत तथा युक्तियुक्त है कि जसा वणन प्रवल्ति देगाभाषा म होता है वसा अ ये भाषा में नही हो सकता 1” ( राजरूपक भूमिका, पृ 1)




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