अद्वैत वेदान्त | Adhwaet Vedant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शोपेनहार और अद्वैत वेदान्त, ५१-८२--शौपेनहार और उपनिषद्वर्ती संकल्पवाद
८२-८४। |
अद्देत वेदान्त और इस्सामो বহীন धथ
इस्लामी दर्शन के कख प्रवतंक, ८५-- मोत ङला सम्प्रदाय, ८५,; करामी सम्प्रदाय,
८४५; अशअरी सम्प्रदाय, ८५-५६; अद्वत वेदान्त का ब्रह्मवाद ओर इस्लामी दशन,
८६-८७; अद्वैत वेदान्त और इस्लामी दर्शन का सृष्टि सम्बन्धी सिद्धान्त, ६७; जीव
का अविनाधित्व, ८७-८८, परमततत्वज्ञान के स्वरूप का विचार, ८८; जाग्रत्,
स्वप्न, सुषुप्ति ओर तुरीयां अवस्था, ८-८६।
अद्वेतवाद की से द्धान्तिक विचारधारा का संक्षिप्त स्वरूप ८९-६०
अद्रंतवाद ओौर आचार दर्शन, ६१, उपनिषद्वर्ती आचार तत्त्व, €१-६२, शाकर
अद्वेत और आचार दर्शन, ६२, अद्वेत दर्शन का कर्म सिद्धान्त तथा आचार पक्ष,
६२-६३; आश्रम व्यवस्था और आचार पक्ष, ६३-६४।
२ : अद्रैतवाद का अव्यवस्थित इतिहास
बेदिक अद्वेतवाद ६५
सहिताएं और अद्वत वेदान्त, ६५--कर्वेद संहिता और अद्वेतवाद, ६६-- देवतावाद
और अद्वंतवाद, ६६-६७, प्रजापति, विश्वकर्मा एवं त्वध्टा के वर्णन में अद्वेतवाद के
बोज, ६७; परमतत्त्व के एकत्व एवं अजत्व की अभिव्यक्ति, ६७; पुरुष सूक्त के
विराट पुरुष मे ब्रह्म के स्वरूप की पृष्ठभूमि, ६७-६८; नासदीय सूक्त और আনত
वेदान्त, ६५-६६ , हसबती ऋचा और अद्वत वेदान्त, ६€९-१०० ; सामवेद संहिता और
अढ्व॑त वेदान्त, १००-१०१, यजुर्वेद सहिता और अद्वत वेदान्त, १०१-१०२;
यजुवद मे ब्रह्म भौर माया शब्दो का प्रयोग. १०२, अथर्व बेद सहिता और अद्वत
वेदान्त, १०२-१०४; ब्राह्मण ग्रन्थ और अद्रेत वेदान्त, १०४-१०५, आरण्यक ग्रन्थ
मौर अद्वैत वेदान्त; १०५-१०७; उपनिषद् ओर अद्वैत वेदान्त, १०७-- सदानन्द काः
मत, १०७, व्लूमफील्ड का मत, १०७; मंक्समूनर का मत, १०७; डायसन का मत,
१०७; प्रो° जे° एस° मेकृनी का मत, १०८; प्रो° गफ का मत, १०८; उपनिषद्
भौर ब्रह्य सम्बन्धी विबेचन, १०८-१०६, सत् एव असतृरूप में ब्रह्म का वणन, १०६-
११०, ब्रह्म का चितू रूप मे वर्णन, ११०; आनन्द रूप में किया गया ब्रह्म वर्णन,
११०; देशातीत ब्रह्म का वर्णन, ११०, कालातीत ब्रह्म का वर्णन, ११०, कार्य-
कारण अवस्था से अतीत ब्रह्म का वर्णन, ११०-१११; पूर्ण सत्य के रूप में ब्रह्म वर्णन,
१११; ईहवर रूप में ब्रह्म वर्णन, १११, स्ष्टा रूप में ब़ह्य वर्णव, १११; रक्षक रूप
मे ब्रह्म वणन, १११-११२, उपनिषदो मे ब्रह्म के नियन्ता रूथ का वर्णेन, ११२; उप-
निषदों में ब्रह्म के नकारात्मक रूप का वर्णन; ११२; डा० दासगुप्त का मत और
उसकी आलोचना, ११३-११४, 'नेति-मेति' के सम्बन्ध में हिलेब़ां और एकहांटे का
मत गौर उश्षकी आलोचना, ११४ , उपनिषददों में बात्मा का स्वरूप, ११४; उपनिषदो
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