अद्वैत वेदान्त | Adhwaet Vedant

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Adhwaet Vedant by डॉ. राममूर्ति शर्मा - Dr. Rammurti Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शोपेनहार और अद्वैत वेदान्त, ५१-८२--शौपेनहार और उपनिषद्वर्ती संकल्पवाद ८२-८४। | अद्देत वेदान्त और इस्सामो বহীন धथ इस्लामी दर्शन के कख प्रवतंक, ८५-- मोत ङला सम्प्रदाय, ८५,; करामी सम्प्रदाय, ८४५; अशअरी सम्प्रदाय, ८५-५६; अद्वत वेदान्त का ब्रह्मवाद ओर इस्लामी दशन, ८६-८७; अद्वैत वेदान्त और इस्लामी दर्शन का सृष्टि सम्बन्धी सिद्धान्त, ६७; जीव का अविनाधित्व, ८७-८८, परमततत्वज्ञान के स्वरूप का विचार, ८८; जाग्रत्‌, स्वप्न, सुषुप्ति ओर तुरीयां अवस्था, ८-८६। अद्वेतवाद की से द्धान्तिक विचारधारा का संक्षिप्त स्वरूप ८९-६० अद्रंतवाद ओौर आचार दर्शन, ६१, उपनिषद्वर्ती आचार तत्त्व, €१-६२, शाकर अद्वेत और आचार दर्शन, ६२, अद्वेत दर्शन का कर्म सिद्धान्त तथा आचार पक्ष, ६२-६३; आश्रम व्यवस्था और आचार पक्ष, ६३-६४। २ : अद्रैतवाद का अव्यवस्थित इतिहास बेदिक अद्वेतवाद ६५ सहिताएं और अद्वत वेदान्त, ६५--कर्वेद संहिता और अद्वेतवाद, ६६-- देवतावाद और अद्वंतवाद, ६६-६७, प्रजापति, विश्वकर्मा एवं त्वध्टा के वर्णन में अद्वेतवाद के बोज, ६७; परमतत्त्व के एकत्व एवं अजत्व की अभिव्यक्ति, ६७; पुरुष सूक्‍त के विराट पुरुष मे ब्रह्म के स्वरूप की पृष्ठभूमि, ६७-६८; नासदीय सूक्त और আনত वेदान्त, ६५-६६ , हसबती ऋचा और अद्वत वेदान्त, ६€९-१०० ; सामवेद संहिता और अढ्व॑त वेदान्त, १००-१०१, यजुर्वेद सहिता और अद्वत वेदान्त, १०१-१०२; यजुवद मे ब्रह्म भौर माया शब्दो का प्रयोग. १०२, अथर्व बेद सहिता और अद्वत वेदान्त, १०२-१०४; ब्राह्मण ग्रन्थ और अद्रेत वेदान्त, १०४-१०५, आरण्यक ग्रन्थ मौर अद्वैत वेदान्त; १०५-१०७; उपनिषद्‌ ओर अद्वैत वेदान्त, १०७-- सदानन्द काः मत, १०७, व्लूमफील्ड का मत, १०७; मंक्समूनर का मत, १०७; डायसन का मत, १०७; प्रो° जे° एस° मेकृनी का मत, १०८; प्रो° गफ का मत, १०८; उपनिषद्‌ भौर ब्रह्य सम्बन्धी विबेचन, १०८-१०६, सत्‌ एव असतृरूप में ब्रह्म का वणन, १०६- ११०, ब्रह्म का चितू रूप मे वर्णन, ११०; आनन्द रूप में किया गया ब्रह्म वर्णन, ११०; देशातीत ब्रह्म का वर्णन, ११०, कालातीत ब्रह्म का वर्णन, ११०, कार्य- कारण अवस्था से अतीत ब्रह्म का वर्णन, ११०-१११; पूर्ण सत्य के रूप में ब्रह्म वर्णन, १११; ईहवर रूप में ब्रह्म वर्णन, १११, स्ष्टा रूप में ब़ह्य वर्णव, १११; रक्षक रूप मे ब्रह्म वणन, १११-११२, उपनिषदो मे ब्रह्म के नियन्ता रूथ का वर्णेन, ११२; उप- निषदों में ब्रह्म के नकारात्मक रूप का वर्णन; ११२; डा० दासगुप्त का मत और उसकी आलोचना, ११३-११४, 'नेति-मेति' के सम्बन्ध में हिलेब़ां और एकहांटे का मत गौर उश्षकी आलोचना, ११४ , उपनिषददों में बात्मा का स्वरूप, ११४; उपनिषदो




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