घनआनंद | Ghananand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ (ख) दपि सुनाति सुलच्छनौ सुबरन सरस सुवृत्त । भूषन बिनु न विराज, कदिता वनिताः मित्त ए (केशव) (ग) कविता कामिति सुखद पद, सुबरन सरस सुजाति 1 अलकार पहिरे अधिक, अदभुत रूप लखाति॥आ (दिव) इस युग के काव्य को अधिकाधिक कला प्रधान बनाने म सहायक रहा । फारसी काव्य की प्रतिद्व द्विता में सडे हाते कै कारण दरार म बाजी मार ले जाने की उद्दाम स्पृह के कारण, और कला-कौशल प्रदशन की प्रवत्ति रखते के कारण इस युग के काव्य मे कारीगरी और सजावट की वारीक्यों की जार कवियों का ध्यान स्वभावत विशेष रहा। नाजुक स्याली ले आने मे, उक्ति वचित््य के विधान में और शब्टविधान के सौन्दय मे अतिशयोक्ति वप्ता, वचिघ्य एव नाद सौ न्यमूलक अलकारा का विशेष व्यवहार हुआ परन्तु काव्यगत रस बे आधार कौ छटोढा नही गया 1 इस प्रकार लगभग २०० वपाँ तक कला प्रधान काव्य रचना का त्रम स्थापित हो जाने के कारण इस सम्पुण युग म ही एक विशिष्ट,कलात्मक दष्टि का विकास हुआ। लोक में वाव्याभिरूचि ओर सौदर्पादश जागृत हुये ओर कला निणय को शक्ति विकसित हुईं। रीतिबद्ध घारा के महत्वपूण कवि ह--वेशवदास चिन्तामणि, भूपण, मतिराम, कुलपति देव श्रीपति, भिलारीदास, महाराज जसवनतिह दूलह पदमाकर ग्वाल प्रतापसादि मादि 1 सोतिसिद्धे कान्य (लक्ष्यमाग्र कष्य) रीतियुग में श्रद्भार की रचना व्रत वाल रीनिवद या रीनिग्रयङ्गार कविया के साथ-साथ कविया का एक अय वग भी था जो श्ज्भार रस की रचनाएँ तो क्या करता था और वाव्यशास्त्र का सहारा भी लिया करता था किन्तु काव्यशास्त्रीय था रौनिग्रथों वी रथना नही किया करता था। इन बविया को रीति सिद्ध कविया काव्य कवि और इनकी रचना को रीतिसिद्ध काव्य या लत्य-मात्र वाव्य कहा गया है। इन कवियों का वग सम्या वी दृष्दि से रीति ग्रन्थकार कवियों की अपेक्षा छाटा है किन्तु इनकी प्रवृत्तियाँ बहुत स्पष्ट हैं। रीतिसिद्ध कविया म विहारी, सेनापति, बनी शृष्ण कवि, रसनिधि, नवाज, पंजनेस मृपसम्मु, प्रोतम, रामसहायदास, हठो आदि का मास लिया जाता है।' बिहारी सतसई, मतिराम सतसई, रसनिधि कृत रतनहजारा, रामसहायदास क्रत रामसतसई आदि ऐसे ग्रयथ हैं जो लख्यमात्र काव्य या रीतिसिद्ध काब्य की कोटि से रख जा सकते हैं। इसो प्रकार रीतियुय मे लिखी गई वारहमासा सखजिस पडऋतु सर्म्बाधनीं रचनाएँ भा इसो कांडि में आती हैं। इन कर्णियों की रचना रीति स नधी हुई है । उसम रोति की एसी छाप मिलती है कि जा राति की परम्परा स अपरिचित है वह इतकी कविता का पूरायूरा आनन्द नहीं ले सरवा | इनको रचनाएँ एसी हाती हैं जिहें रसों तथा उसरे अवयवा, अलकारा एवं ২ নিশী লাবিব বা বব সলিশল মহত গান নল ४०८ ४८७




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