कबीर का सामाजिक दर्शन | Kabir Ka Samajik Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताववा । १४ कबौर के दशन की सबस बडी मोल्किता यह है कि वे अपन आप को इख लेन में समथ थे | अपन आप को देख लेन वाला यक्ति है' मोल्कि दहान की सप्टि १र অনা ই ॥ दशन का यह पहला लवण है। क्योकि दशन को शक्ति अपने में होती है | दूसरे वी आँखा से कोइ नही दखता 1 कबीर को 'मानव समाज को मानव समाजकैस्पमे दखनक्ी विमल दष्टि मिरी थी। इस दष्टिस व डच नीच, नानी अज्ञानी तथा नरनारी का समान रूप स दखत थे । वे स्वग और घरती के विविध भंदा को नही मानते थे । उदनि इस धरती पर एक सभ्य देखा था । जिस सत्य के प्रकाश से सारा जग प्रवाशित है। जड भौर चेतन वा सम्बंध भी उसी से है । जीव और शरौर মা অধ भी उसी से है। मानव जीवन के लिए उपयोगी भौतिक पदार्थों मे भी वही सत्य समाया हुआ है । इसलिए फ्योर भक्ति और जीवन का दनिक वाया को दो नहीं मानते । जीवन के विविध कम ही भक्ति के सोपान हैं । भक्ति करके मनुष्य कम करना सीखता है 1 भक्ति इसलिए की जाती है कि मनुष्य समाज म हर तरह स सुरक्षित रह। भक्त बुरा कम नही करता । भक्त बुरे माय पर नहां जाता | इसलिए भक्ति का पथ कम बा पथ है और कम का पथ जीवन का पय है। यदि भाक्त से जीवन बनता है तो कम स भी जीवन बनता है । कम और भक्ति अत म एक ही हैं । समाज द्वारा मा य छौकिक और पारलौकिक घारणाएँ कम करने के लिए हैं। मनृष्य कम करके जावन पाता है और जीवन पाकर अमरत्त्व पाता है । अमरत्त्व मोश्य पद है । मोक्षा क्म करने बाला भी पाता है और भक्ति करन वाछा भी । मोश्य जीवन का भा तम छश्य है । इसी के छिए लोग भक्ति और कम दोनो करत हैं। अत में समाज द्वारा भाय लोबिक और पारलीक्रिक धारणां एक हा घर।तल पर उतरती है । इस धरती पर क्छ भी अलौकिक नहां है। जो कुछ है सव छौक्कि है। यह सब समचने का फेर है। जब आदमा को चान नही होता तो उसे आदचय होता है । ज्ञानी कसी आइचय नहीं करता । वह सद असद समझता है। इसलिए बह कम करता दै । क्म मनुष्य का व्यक्तित्व दता है। अत यत्तित्त्व पान क॑ लिए मनुष्य को कम करना चाहिए । कम वह है जिससे किश्चा की हानि न हो। यदि क्सी के क्भ स क्सी की हानि होती है तो वह कम नही है । समाज के सभी मनुष्य कम नही कर पाते क्याकि उतक सामन स्वाथ है। कम तो वही कर सकता है जो नि स्वार्थ हा । जो समाज के विविध सम्बधा मे अपने को उचित रूप से समझता हो और उसके अनुसार कम करता हो ।




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