मंजिल से आगे | Manzil Se Aage
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
332
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मडित से बागे १७
जी हां, यहां पा मौसम अच्छी-यासी अधि-परीक्षा है।”
भाषि निदो चंद कर् लिया करे) अम्तियरीक्षा में शापद पुछ कमी
चट् আছ)”
दिवाफर लाजवाब रह गया ।
ये दोनों साथ-साथ घतते रहे | साया का घर भी निकल गया । कोई
इुघंटना नही हुई । सामने की गली पर पहुंचकर शबुम्तला बोली, “आप कयां
कहना नाहुने पे, पदा नदीं !“ दिवाकर कुय कदे कि यह फिर बोल उठी,
“अच्छा, अब आप गामने से जाइये और मैं पौेमेजाती हं 1
दियाकर ঘধা पु कहने आया था, जकड़ से छूटने आया या, जकड़ में
कंस गया । भय यह अकेला घल रहा था। कुछ ने कह सकते की निराशा के
बावजूद एफ अजीब-गी पुलक उसके शरीर में दौड़ गई थी । दिवाकर अपने
कमरे में पुता | बत्ती जलाई, णिढ़की सोली । देखा सामने, सिड़फी बंद थी |
दिवाकार फिर भी सोचता रहा, “बहू कितनी ममतामयी है। फया राघ मुच इंसान
उग स्पर्ण से यचित होकर जो उसकी याशनाओं को जगाते हुए भी उसके
पिग्गय रूप पते ऐोने मरी देता, निरए पशु ही नहीं रह जात ! सासारिफ्ता से
चैराग्य, मेवाद्रत और तिद्धान्तों से पाणिग्रहण करे जीवन फो मणिक
निष्कृतियों मे पह इसनी दूर नहीं भागता कि एफ दिन उसे आत्म-प्रवघना कह
कर उगके प्रति पिकागर से भर उठे । युग-युग से आते हुए मनुष्य का इप्ट
मया है और उगयपी पूर्णझामता महा है ? शबुन्तला मेरी बया है ! नारी पुरुष
की ययां है हि उसमे ही जन्म पार यहू उसके उच्छृवास की ऊप्मा, स्पर्ण
की सिहरन और गह्वास के लिए तड़पता है? बया उस आनद को मनुष्य
घापरूर नहीं रस समता ? ऐसा सोचतेन्मोचते उसने अनुभव किया मि
शपुन्तला उसके पास बैठी है और अपने उज्ज्वल नेत्रों मे उसकी ओर अपलक
देख रही है । भगते दिन उप्ते अपने फमरे में एए चिट॒ठी मिलो । लिखा था,
“पामों मेरी परीक्षा समाप्त होगी | इत्मीनान से कहियेगा जो कहना हो ।
देखती ६, हर वषाा सिडकी मे ही बैठे रहते हैं ।
पद्र की लिपावट सुंदर थी । तोन दिन तक प्रतीक्षा करने के लिए लिखा
शया था। इस छोटी-सी पुर्जी को पढ़ने के बाद दियाऊर की हालत उस पीने
ঘাটি के समान थी, जिसे शराब बा एफ प्यासा देकर मेष मे; लिए शाति-
पूर प्रतीपा फले फो यत बह दी गरू हो । वह उस पुर्जी को बार-बार
पड़ रहा था । ू
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