प्रत्यक्ष शारीर भाग 2 | Pratyaksha Sharir Bhag 2

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Pratyaksha Sharir Bhag by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेशीखरणुड । हर शिरश्छदा पेशी में बंघती है । अन्य पेशिया नासापुर के चारों भर नासाधाचीर की तरुणास्थियों मे और त्वचा से बंघी है। इनकी क्रिया इनके नाम से स्पष्ट है | इनको क्रियाशील बनाने वाली नाड़ियाँ चक्तूनाडी की शाखायें है । (५) मुखचिचर की पेशियां मध्य मे एक, और एक-एक पाश्न से भाठ है । इनमें मध्यस्थ पेशी प्रायः गोल है और भोछष्ाघर को घेर कर रहती है। यही पेशी शेष भाठों पेशियों की निवेश भूमि है- इसका नाम सुखमसद्रशी है। शेप आठ पेशियों के नाप नासापाश्व में बहि-क्रम से [ एक एक ओर ]-- नासोछकषणी, सकणीससुन्ञसनी, सकशीकषणी कपोलिका, प्रहासनी, सकणशीनसनी, अधरावनसनी और अअधरोत्लेपणी है । इनमे- मखम द्र्णी '-ऊपर नासामध्य प्राचीर के मूठ में और नीचे भधघोहजुम णडलसे अगले चार दातों के दोनों ओर बधी है। यह ओछ्राघरको मुकझुलाकार करके मुखको चन्द्‌ करती हैं ( ६४-६५ चित्र ) । नासोएकषेणी *--नामकी पेशी के तीन मूठ है (६४ ६५ चित्र ) । इसका एक मूल ऊध्वदन्वस्थि के नासाकूर में, दूसरा सूख इसीके नेलाघरीय चिचर के नीचे भर तीसरा मूल गण्डकूर मे बंधा हुआ है। इसका निवेश नासा के पार्इवस्थ तरुणास्थियों मे सक्कणी तक मुखमुद्रणी से और उपर के ओ्ठ में होता है। रकणोसमज्सना' - नाम को पेशी एूवोक्त पेशी के पीछे रहती है ( ६४-६५ ) । यह उध्वहन्चस्थि के नेलाघरीय विचर के नीचे से उत्पन्न होकर खक्तणी में चधी हुई हैं । ( सुखविवर के दोनो कोणों का नाम खकणी या सक्णी है ) । रकणीकषणी * _ नामकी पेशी गण्डास्थि से उत्पन्न होकर सकणी में छगती है ( ६४ ६५ चित ) । कप्पोलिका नाम की पतली चौड़ी पेशी कपोल ( गाल ) बनाती है! सुखमुद्रशी--(01छा0०पॉ8/15 (5 २ नासोछकर्पशी-(008ती४105 [851 5फटा1- णाई ( एा |.ढ४. 29 50 हा तप ंघ5डा ) रे सुकणो समुन्नमनी --(081॥105 ( छा | «7 ताप 05.) ४. सुक्कणी-कर्षणी-०णाणकाएणड द्ुएा 6 गत | ४. कपोलिका--अछघट८टाए&01 मर




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