मालवी और उसका साहित्य | Malavi & Usaka Sahitya

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Malavi & Usaka Sahitya by क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'श्याम परमार - Shyam Parmar

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श्याम परमार - Shyam Parmar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालवी : सीमा और क्षेत्र १७ मालवी दोहा चंदा त्हारी चाँदनी, सूती पतल्ुंग बिछाय । जद॒जागी जद एकली, मरू करारी स्वाय ॥ छे छुस्‍ला छे मूदढ़ी, छुल्ला भरी परात। एक इल्ला का वास्ते, छीड़या सायन बाप ॥ टीकी दे मत्ञा चढ़ी, बिच काजल की रेख | नायब को सासे नहीं, लिख्या विधाता लेख 10? उद्धरणों से स्पष्ट हो जाता है कि राजस्थानी और मालवी मे वह नेकस्य नही है जो मालयी और निमादी मे है । ग्रपश्रंश एवं आधुनिक भाषाएं बोलियो के इतिहास का अध्ययन प्रमाणों के अभाव में कठिन विध्रय ही सिद्ध होता हे | यह स्पष्ट हे कि प्राचीन जनपदों की अपनी-अपनी भाषाएँ कान्नावधि ने प्राकृतः अथवा “अपशभ्रंश” ओर देश नाम से प्रसिद्ध हुईं ।* किन्तु उन प्राकृतों एवं হী হা দলাঘা के अभाव मे रूप निधा- रित करना कठिन विषय हों गया है। केवल शोरसेनों अ्रतश्नंंस हो एक ऐसी भाषा हे जिससे हम वर्तमान कई बोलियो की उत्पत्ति का अनुमान करते हैं । किन्तु साहित्य की भाषा ओर साधारण जन की भाषा का अन्तर ध्यान मे रखते हुए. हमे यह स्वीकार करना होगा कि जो साहित्य उपलब्ध है वह बोली जाने वाली भाषाओं से किचित्‌ सुसंस्कृत वग की भाषाओं का ही हैं। इस दृष्टि से प्राकृत को स्थिरावस्था के परिणाम स्वरूप अपभ्रंश का विकास हुआ ओर अउभ्रश की वेयाकरणिक नियम-बद्धतावश आधुनिक प्रान्तीय १. माजवी लोक-गीत' , पृष्ठ ४१-8२ । २. “तानपि वं याकरण निपद्धानपञ्च'श माषा नियमानुल्रङ्ध्य भरङृति- प्रवत्तमानो विविध जनपद भाषाव्यवहारः सामान्य संज्ञया प्रातः अपभ्र श' इत्युच्यमानो5पि विशिष्टतया तत्तद शमाषानाम्ना प्रसिद्धि- सगात्‌ ।?--गा० ओऔ० सी०, खँ० ३७, पृष्ठ छ३ ।




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