तुलसी ग्रंथावली | Tulsi Granthavali

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Tulsi Granthavali by माता प्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ रामचरितमानस का पाठ ॥ संबत १७०२ मीती जेर्ठ सुदी ५ बार सुक्रवार के पोथी लंकाकांड समाप्त।॥ तिथि गणना से विगत और वत्तमान किसी संवत्‌ में ठीक नहीं उतरती | ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ८ के अंक के स्थात पर उसका मुँह बंद करके ७ बनाया गया है--वास्तविक तिथि १८०२ थी, क्‍योंकि १७०२ में आये हुए ७ की शैली প্রথ भर में आये हुए ७ की शैली से भिन्न है : मंथ भर में जितनी बार भी ७ आया है, उसकी नोक ऊपर की ओर मुड़ी हुई है और पुष्पिका में वह नीचे की ओर है । १८०२ की तिथि गणना करने से भी विगत संवत्‌ मे ठीक आती है। (८, ४०) सं० १६९३ की प्रति--पुष्पिका इस प्रकार है :-- ॥ लिखा मिती सावन बदी ७ सन्‌ १०४२ सं० १६९३ साल के ॥ इस पुष्पिका में सन्‌ के ० के स्थान पर २था और संवत्‌ के ६ के स्थान पर ८ था, किंतु २ की दुम मिटाकर उसका मुँह बन्द कर दिया गया है, और ८ में, जेसा ऊपर की कुछ जाली तिथियों मे हमने देखा है, नीचे एक और पेट बढ़ा दिया गया है। ध्यान से देखने पर यह बनावटे स्पष्ट ज्ञात होती है | तिथि में दिन अथवा अन्य कोई आवश्यक विस्तार न होने के कारण उसकी गणना नहीं की जा सकती | प्रति अपनी वास्तविक तिथि के अनुसार ही पुरानी भी ज्ञात होती है। (९, बा०) सं० १६४३ की प्रति---पुष्पिका इस प्रकार है :- ॥ संवत्‌ १६६४ शाके १५०८...वासी नन्द्दास पुत्र कृष्णदास हेत लिखी रघुनाथदास ने कासीपुरी में ॥ यह ध्यान देने योग्य है कि पुष्पिका की इस शब्दावली पर स्थाही और कलम फेरी हुई है, इसकी लिखावट शेष प्रति की लिखाबट से मेल नहीं खाती है, १६४३ के ६ तथा ४ और इसी प्रकार “शाके” और १५०८ के बीच इतनी जगहें छूटी हुई हैं कि दूसरे अंक तथा अक्षर भी लिखे जा सकते थे शौर तिथि का मास दिवसादि कोई विस्तार भी नहीं है। अतः तिथि ओर यह पुष्पिका प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती । भ्रति का पाठ भी बहुत श्चशचुद्ध है ।२ १--विशेष विवरण के लिए देखिए लेखक का तुलसीदासः प० ५१, ८६ तथा १८५ |




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