प्राचीन वार्ता-रहस्य भाग - 3 | Pracheen Varta Rahashya Part-3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे ओर मदनमोहनजी को सेवी श्रीडा कुरजी के भावतें अधिक श्रीआचायजी महाप्रभुके भावतें करतें तातें भीआचायजी प्रसन्न होइक श्रीमदनमोहनजी के दोऊ चरन स्याम दरसन कराए । वाको आख्तय यह जो- सबाह्ञ गोर, सो तो आआचार्य जी महा- प्रभु को निजश्वरूप-भीस्वामिनीजी को श्रोश्ंगबर्ण । ओर चरम दोऊ स्याम, लो भोकुष्स के श्रीअ्रंगवर्ण | तामें धरन स्याम को अभिप्राय निकुंजादिक लीला में श्रीठाकुरणी दूसरे स्वरूप (श्री स्वामिनीजी ) के चश्न--आश्रित है । छातें श्रीठाकुरजी के भाषते श्रीश्याचाण्डी को खवा दिखाप | या प्रकार सेठ पुरुषोसमदास पर अन॒म्नद्न श्रीआचार्यकी किए | सो शऔौबयदनमोहनजी को भीझाचायंजी ने অজানা स्नान कराइ पोट बेठारे, सेठ के मार्थे पधराए ॥ वात। प्रसंग-१- और सेठ कासी मुख्य विस्वेस्वर महादेव, सो कासी के राजाहें, तिनके दरसन को कबह नहिं जाते । सो एक दिन विस्वेस्वर-महादिव नें स्वप्न में सेठ पुशुषोत्तमदास से कथो जो- गाम को नातो तुम नाहि राखत, तो वेष्ण॒व को नाते तो राखो, कबहू हम को महाप्रसाद तो दियो करो । तव सबेरे षठ पुरषोत्तमदाघ् सेवा सों पहोधिके महाप्रसाद के उरा बीरा ले विस्वेस्वर महादेव के देवालय को चले | तब गांड के लोग सब आश्रय हे रहे जो-- सेठ कबह नांहि आवते सा आजु क्या आए ? हो कितने लोग संग सेठ के चले+ सो सेठ महाप्रसाद को डबरा, बीड़ा चारि परे, अक्रिब्शु- स्मरण कर्कं उटि चले ! तव॒ बड़ बहे इव ऋण হব




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