प्राचीन वार्ता-रहस्य भाग - 3 | Pracheen Varta Rahashya Part-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे
ओर मदनमोहनजी को सेवी श्रीडा कुरजी के भावतें अधिक
श्रीआचायजी महाप्रभुके भावतें करतें तातें भीआचायजी प्रसन्न
होइक श्रीमदनमोहनजी के दोऊ चरन स्याम दरसन कराए ।
वाको आख्तय यह जो- सबाह्ञ गोर, सो तो आआचार्य जी महा-
प्रभु को निजश्वरूप-भीस्वामिनीजी को श्रोश्ंगबर्ण । ओर
चरम दोऊ स्याम, लो भोकुष्स के श्रीअ्रंगवर्ण | तामें धरन
स्याम को अभिप्राय निकुंजादिक लीला में श्रीठाकुरणी दूसरे
स्वरूप (श्री स्वामिनीजी ) के चश्न--आश्रित है । छातें
श्रीठाकुरजी के भाषते श्रीश्याचाण्डी को खवा दिखाप |
या प्रकार सेठ पुरुषोसमदास पर अन॒म्नद्न श्रीआचार्यकी किए |
सो शऔौबयदनमोहनजी को भीझाचायंजी ने অজানা
स्नान कराइ पोट बेठारे, सेठ के मार्थे पधराए ॥
वात। प्रसंग-१- और सेठ कासी मुख्य विस्वेस्वर महादेव,
सो कासी के राजाहें, तिनके दरसन को कबह नहिं जाते । सो
एक दिन विस्वेस्वर-महादिव नें स्वप्न में सेठ पुशुषोत्तमदास से
कथो जो- गाम को नातो तुम नाहि राखत, तो वेष्ण॒व को नाते
तो राखो, कबहू हम को महाप्रसाद तो दियो करो । तव सबेरे
षठ पुरषोत्तमदाघ् सेवा सों पहोधिके महाप्रसाद के उरा
बीरा ले विस्वेस्वर महादेव के देवालय को चले | तब गांड
के लोग सब आश्रय हे रहे जो-- सेठ कबह नांहि आवते
सा आजु क्या आए ? हो कितने लोग संग सेठ के चले+
सो सेठ महाप्रसाद को डबरा, बीड़ा चारि परे, अक्रिब्शु-
स्मरण कर्कं उटि चले ! तव॒ बड़ बहे इव ऋण হব
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