कीर्तिलता और अवहट्ट भाषा | Kartilata Aour Avahat Bhasha

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Kartilata Aour Avahat Bhasha by शिव प्रसाद सिंह - Shiv Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कै द] कीतिंलता और अवहद्द भाषा श्रब हम यदि इन शब्दों के प्रयोगो के कालक्रम पर विचार करे तो एकं महत्वपूर्ण तथ्य सामने आता है। संस्कृत के आलकारिकों ने श्रप्रंश भाषा केलिए -सर्वत्र अपभ्रश” शब्द का प्रयोग किया या यह कि उनके द्वारा रखा छुआ यह नाम ही इस भाषा के लिए रूढ़ हो गया । किन्तु प्राकृत के कवियों ने इसे अवहस कहा । अ्रपश्न श के कवियों पुष्पदत्त आदि ने भी इसे अवहस ही कहा | अवहद्ट! 'कृहा अदृहमाण ने, प्राकृत पैगलम्‌ के टीकाकार वशीधर ने, विद्यापति और টি ने । इस आधार पर विचार करने से लगता है कि अवहृद्! शब्द प्रयोग केवल परवर्ती श्रपभ्र'श के कवियों ने किया । क्या इस श्राधार पर यह -नदीं कदा जा सकता कि परवती श्रपभ्र' श के इन लेखको ने इस शब्द का प्रयोग जान-बूक कर किया | अ्पश्रंश या अवहस या बहु प्रचलित देसी? शब्द का भी प्रयोग कर सकते थे; परन्तु उन्होंने वेसा नहीं किया | इससे सहज अनुमान किया जा सकता है कि अवहृद्द शब्द पीछे का है और इसका प्रयोग परवर्ती अ्पश्र श के कबियों ने पू्वंबर्ती श्रपश्रश की ठुलना में थोड़ी परिवर्तित भाषा के लिये किया। वंशीधर ने तो सस्कृत की टीका में सवंत्र अवहृद्द! ही लिखा, जबकि संस्कृत में अ्रपश्रेश या अपभ्रष्ट का प्रयोग ही प्रायः होता था । कहना चाहें तो कह सकते हैं कि यह प्रयोग जानकर हुआ और अपश्रष्ट” की भी भ्रष्टता ( भाषाशाञ्न की शब्दावली में विकास ) दिखाने के लिए किया गया यानी इस शब्द के मूल में परिनिष्ठित श्रपश्र श के और भी अधिक विकसित होने की भावना थी | अवहद्द और परवर्ती अपभ्रंश | ....अवहषट! नाम परवर्ती अपमरंश के कंबियों की इच्छा से रखा गया हो या निस भी किसी कारण से इसका प्रयोग हुआ हो, इसको शब्दगत शक्ति इसे श्रपभ् श से भिन्न बताने में श्रसमर्थं है । यह वस्तुतः परिनिटिष्त श्रपभ्रश की ही थोड़ी बढ़ी हुईं भाषा का रूप था और इसके मूल में पश्चिमी श्रपम्रश की : अधिकाश ग्रद्धत्तियों काम करती हैं। परवर्ती अपभ्रश भाषा की दृष्टि से परि. 4 निष्ठित से मिन दौ गया था उसमें बहुतं से नष्ट विकसित तत्व दिखाई पढ़ते : हैं। विभक्तियों के एक दम नष्ट हो जाने अश्ववा्‌ लुघ् हो जाने के कारण अपभ्रंश + / 88 ५०६ ৯২৮, हक রি लिह पर्सी की प्रयोग आरंभ হী गया यो, ववकी कल्या इं काल मे और सीदे मई [ वौक्य के स्थानंक्रम॑ से अर्थवोध की प्रणांती निर्विभक्तिक | তির थी; वंह और ` भी सले हुर। सर्वचीमों तथा क्रिकापदों में দর [५ न्‌ {श টি মূ ६ (थ ५ ॥ নে ५




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