कामायनी : एकपरिचय | Kamayani Ek Prichaya

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Kamayani Ek Prichaya by गंगा प्रसाद पाण्डेय - Ganga Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) प्राचीन इतिगृत्त से इतने परिचित नहीं या इतने संशयालु हूँ कि इसे एक अधूरे सांफेतिक श्रर्थ में प्रदएण कर लेना स्वाभाविक हो जाता हे । कहना व्यय होगा कि इस प्रदत्त ने कामायनी को सम्पूर्ण सजीवता के साथ ग्रहण करने में कोई सद्दायता मे देकर बाधा ही पहुँचाई क्योंकि उसको सांकेतिकता का श्राघार नष्ट करके उत्तकी प्रेरणा को मूलतः समझना सइज नहीं रद्द जाता। कामायनी मनु के मध्तिष्क और तक ओर विश्वास के श्रन्त- इन्द्र या संधर्ष से सम्बन्ध रखती दे अवश्य, परन्तु वह अन्‍्त्॑न्द्र जीवन के कठोर धरातल पर ही मूल्य रखता है ] यदि उसे केवल शम श्रलौ- किकता में निर्वासन दे दिया जावे तो मनुष्य की किसी भी मानसिक स्थिति का विश्लेषण यां उसकी सक्रिय प्रेरणाओं का वैज्ञानिक विष्चम भी इस लोक का नहीं रह जायगा । अतः कामायनी को उसको ऐतिदासिक * पृष्ठभूमि पर स्थापित करके ही उसकी संक्रेतिक रूपरेखा का मूल्य अआरंकना उचित दोगा । लदयतः कामायनी उसी मदासंगीते फी पुरातन रेक दोहराती है जो हमारी संस्कृति में श्रादिम काल से व्याप्त है। इसीसे मनु श्रपने श्रकेलेपन को, शैल निर्भर न बना हतभाग्य ৬০ गल सका नदी जोकि दहिमषरड, दौदकर মিত্রা ন जलनिधि श्रंक आह वैसा दही हूँ पाषंड। से व्यक्त करके समष्दि की श्रदम्य शक्ति का बोध प्राप्त करते है -- शक्ति के विद्युत्‌ कण जो व्यस्त विकल बिखरे हूँ टे निरपाय, समन्वय उसका करें. समस्त विजयिनी मानवता दो जाय। अपने अहम के पोषक मनु ॥ विश्व में जो सकल सुन्दर हो विभूति महान, समी मेरी हँ उसी करती रहें प्रतिदान ।




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