भारतकी खुराक की समस्या | Bharat Ki khurak Ki Samasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.85 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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आर. के. प्रभु - R. K. Prabhu
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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तंगीके जमानेमें
[पिछली लड़ाऔके दौरानमें जब भारतमें खाद्य-पदार्थोकी तंगी
फंली हुआ थी, अुस समय गांधीजीने अपने देशवासियोंको निम्न-लिखित
सलाह दी थी । देशकी वर्तमान स्थितिको देखते हु आज भी असका .
. महत्व है, जिसे. अभी भी . जरूरतका लाखों टन खाद्यान्न आयात
करना पड़ रहा है। |]. ल्
..... कहावत है कि जो जितना बचाता है, वह अतना ही कमाता या
पदा करता है। जिसलिजे जिन्हें गरीबों पर दया है, जो अनके साथ
अंक्य साधना चाहते हैं, अुन्हें अपनी आवश्यकतायें कम करनी चाहिये
यह हम कओ तरीकोंसे कर सकते हैं। मैं अनमें से कुछ ही का यहां
जिक्र करूंगा ।
_ -... धनिक वर्गंमें प्रमाण या आवश्यकतासे कहीं ज्यादा खाना खाया
और जाया किया जाता है। अेक समयमें अेक ही अनाज जिस्तेमाल
करना चाहिये । चपाती, दाल-भात, दूध-घी, गड़ और तेल ये खाद्य-पदार्थ
शाक-तरकारी और फलके अपरांत आम तौर पर हमारे घरोंमें जिस्ते-
माल. किये जाते हैं। आरोग्यकी दृष्टिसे यह मेल ठीक. नहीं है।
जिन लोगोंको दूध, पनीर, अंडे या मांसके रूपमें स्नायवर्धक तत्त्व मिल
जाते हूँ, अुन्हें दालकी बिलकुल जरूरत नहीं रहती । गरीब लोगोंको
तो सिफ॑ वनस्पति द्वारा ही स्नायुवधंक तत्त्व मिल सकते हैं। अगर
धनिक वर्ग दाल और तेल लेना छोड़ दे, तो गरीबोंको जीवन-निर्वाहके
लिखें ये. आवदयक पदार्थ मिलने लगें । जिन बेंचारोंको न. तो प्राणियोंके
_ दारीरसे पंदा हुअ स्नायुवधंक तत्त्व मिलते हैं और न चिकनाओ ही।
अन्नको दलियाकी तरह मुलायम बनाकर. कभी नहीं खाना चाहिये ।
...... अगर असको किसी रसीछी या तरल चीजमें डुबोयें बगैर सूखा ही
श्द्
पट
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