मुण्डकोपनिषद | Mundkopnishad

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Mundkopnishad by श्री शंकराचार्य - Shri Shankaracharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ युण्डकोपनिपद्‌ [ इुण्ठक १ ৩০০ न्व [अ + [1 गौरी गुप জী ঘর लोन ह परे सहशालोप्गतं रिषः [>3 = 0১৬ + पपर । कद्िन्तु भण! चलाते জনিত হি भवतीति ॥ ३ ॥ হীনঙ্নান प्रपिद्र আজ গাদন! विके नन व्यि জন্‌ দি জারা ই £ | ২॥ হীন হানার মা यासे महागूहओ्विस भारदाजशिष्यमाचाय॑. विधि तश्नधाशाद्रमिस्येतत। उप्सत्त पयतः सन्फाच्छ प्रध्याव्‌! ्ौन््किसोः दप्यथद्वंग्‌ নিধির पूपनियम इति मम्यते । मर्मादाकाार्थ मध्यदीमिकात्या- गार्थ वा विशेषणम। असदा- दिपुपसदनविषेरि्वात्‌ क्लिमित्याह--कपिस्लु भगवो [8 विहते ठु इति पि भगवो किस किस रुते आन নানু अङ्गिक पप ५. 7 यह सत्र छुछ जनि দহাহাত- ফন शौनक जनके पुत्रे भादानके हिय आचार्य अङ्गिक पि विधिवत्‌ अर्द्‌ शदमटुपर्‌ जर श्ट । शौनक थोः অনি सते पश्चात्‌ रिद्‌ विरोपण দিন यह जाना वात है. कि इसे দু आखगम [ गुहपस्दनवा ] को मिय्म नहीं था | अतः इसकी र्यदा নিহিত হবেই लिये अप्या मथदीपिकान्यायके ভিত यह दपण द्वि गणा है। क्योंकि यह उपसदनतित्रि हमझोगेंगे भी মাননীয় ই। सौते क्या पूछा, सो वतः আনি ইমাদ ই भषन्‌ ! धमतु किस्त बस्तुके जान हिये पः दहल दीपक रनेरे कत शर भीतर दोन ओर पदता हती मष्यवीपिक् य देदलीवीपनयाय कते दं ! अतः यदि वह कथन्‌ भस प्प न्यावते ही हो और ते वह তান জি ছি ফন নিবি इससे पूर्व मी थी हमहोगेके ভি মী জা कै लैर वदि द कथन मदः টি ভিউ হা জী बह समना नादि जि णपि दर प्तक




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