बुझने न पाय | Bujhne Na Paay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर चुकने न पाय
अभया वहाँ से उठकर चल पड़ती है और डा० स्वरूप बाहर
की और चल देते हैं।
जो चरमया नागरिक जीवन से इतना त्रोत-प्रोत है, उसके लिए
निरा दिहात का बातावस्ण उसके मानस.स्तर को अचचल किये है।
वह नहीं चाहती है, वह श्रयं चल होकर दूठ-सी पड़ी रहे, उसमें
हलचल न हो, वह स्तब्ध होकर नहीं रहना चाहती । वह पाती है
कि, यह जो स्थिरता है, वह तो नितांत शीतल है, बफ से भी अ्रधिक
शीतल । श्रौर शीतलता जीवन नहीं है, उसे तो उष्णता चाहिए,
उष्णता के अभाव में वह पीलापन के अधिक निकट प च गर है,
उसे लालिमा चाहिए, उस लालिमा मे तरलता न हो, वह ठोस हो,
वह सघन हो और सघनता के लिए वह विहल-बेचैन हो उठती है। वह
चारो ओर दुष्टि दौदाकर देखती है--देखती है कि उसके आस-पास,
जहाँ तक उसकी दुष्टि जाती है, फूस के छोटे-बड़े मोपड़े है, फोपड़ों की
धनी पंक्तियाँ हैं, उनमें औरत-मर्द बूढ़े-बच्चे किलबिल-किलबिल करते
हैं। कही से धूएँ निकलते हैं, कहीं से कवल धूल-ही-धूल निकलकर, हवा
के साथ बहती हुईं, वातावरण को धूमिल किये छोडती इ । वह पाती
है, बहुत-से औरत-मद' बाहर खेतो से घास या अनाज के बोमों को
सिर पर लादे हुए हँसते-बोलते त्रा रहे है, कुछ ही दूरी पर वह पाती
है कि छोटे-छोटे चरवाहे सेतो से मवेशियों को चराकर, धूल उड़ाते
डैए गाँव की ओर आ रहे है। शीत का दिन है; पर उनके शरीर
पर ढैंकने को पूरे वस्त्र नहीं--जो भी है, काफी गन्दे ! अभी-अभी
कु ए पर चारों ओर से घेरकर जो औरते पानी भर रही हैं, उन्हें
भी तो जसे सर्दी लगती नहीं, पहनने को उनकी वे गन्द] स। डया
रौर बदन पर गन्दे सलक. उफ, यही दिहा ह ! बाबूजी का दित
“जहाँ उनके देवता का निवास है. उफ कितनी गहरी गरीबी के
शिकार है ये अभागे मानव ! और यही शोभा है इस दिहात की !!
अभया इससे अधिक सोच नहीं सकती, वह अपनी जगह
से उठ पड़ती है, वह अपने बदन को आईने के पास आकर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...