मिलन यामिनी | Milan Yamini
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
यह वृक्ष वहीं जिसपर पतभर, मधु ऋतु का शासन चलता हैं;
प्रत्याशाओं के फूलों में फूला-भूला स्वप्नित्र तत्त्वों--
का श्रमलतास फिर एक बार
कर जाता है मुभको उदास ।
वर्षा:--
“मर-भर लो वृष्टि लगी होने, अ्रम्बर के दुग के कोने से,
मन क्यों यों गल-ढल जाता हैँ, श्रभिलाषा पूरी होने से,
ग्रन्तर में उमड़े भावों का इतना ही तो इतिहास नहीं,
मोती की फ़सलें उगती हें, श्राँस की बूंदें बोने से ।”
सन्ध्या:-- प्राण, सन्ध्या कुक गई गिरि, ग्राम तरुपर
उठ रहा हैं क्षितिज के ऊपर सिदूरी चाँद
मेरा प्यार पहली बार लो तुम
चान्दनी :---“चान्दनी रात के आँगन में
कृ छिटके-छिटके से बादल
कुछ भटका-भटका-सा मन भी !
जब सारी दुनिया सोयी हे, तब नभ मंडलपर चाँद जगा,
कछ सपनों में डबा-इबा, कुछ सपनों में उमगा-उमगा,
उसके पथ में भ्रनचाहे से कुछ बेबस बादल के टुकड़े;
जैसे ये बादल के टुकड़े सुखमा का आ्ँचल थामें से,
अनजान किसी पर न्योच्ावर
क्या रोमन, स्वगतमय होगा
मेरे उर का पागलपन भी ?
मिलन याभिनी' का प्रणय व्यापार कवि की दृष्टि में प्रकृति कौ एकं स्वाभा-
विक माँग हूँ, जिसकी पूर्ति के लिए कविता के पात्र साधन मात्र हं --
“सखि अ्रखिल प्रकृति की प्यास, कि हम-तुम भीगे ;
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