मिलन यामिनी | Milan Yamini

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Milan Yamini by बच्चन - Bacchan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) यह वृक्ष वहीं जिसपर पतभर, मधु ऋतु का शासन चलता हैं; प्रत्याशाओं के फूलों में फूला-भूला स्वप्नित्र तत्त्वों-- का श्रमलतास फिर एक बार कर जाता है मुभको उदास । वर्षा:-- “मर-भर लो वृष्टि लगी होने, अ्रम्बर के दुग के कोने से, मन क्यों यों गल-ढल जाता हैँ, श्रभिलाषा पूरी होने से, ग्रन्तर में उमड़े भावों का इतना ही तो इतिहास नहीं, मोती की फ़सलें उगती हें, श्राँस की बूंदें बोने से ।” सन्ध्या:-- प्राण, सन्ध्या कुक गई गिरि, ग्राम तरुपर उठ रहा हैं क्षितिज के ऊपर सिदूरी चाँद मेरा प्यार पहली बार लो तुम चान्दनी :---“चान्दनी रात के आँगन में कृ छिटके-छिटके से बादल कुछ भटका-भटका-सा मन भी ! जब सारी दुनिया सोयी हे, तब नभ मंडलपर चाँद जगा, कछ सपनों में डबा-इबा, कुछ सपनों में उमगा-उमगा, उसके पथ में भ्रनचाहे से कुछ बेबस बादल के टुकड़े; जैसे ये बादल के टुकड़े सुखमा का आ्ँचल थामें से, अनजान किसी पर न्योच्ावर क्या रोमन, स्वगतमय होगा मेरे उर का पागलपन भी ? मिलन याभिनी' का प्रणय व्यापार कवि की दृष्टि में प्रकृति कौ एकं स्वाभा- विक माँग हूँ, जिसकी पूर्ति के लिए कविता के पात्र साधन मात्र हं -- “सखि अ्रखिल प्रकृति की प्यास, कि हम-तुम भीगे ;




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